मोदी “कल्ट” तो ‘ऑकल्ट’ के लिए स्वागत
बंगाल में बैठकर हिंसक चुनावी घामासान के बीच ब्लॉग लिखने की बात अपने आप में प्रश्न है। शरीर में कहीं भी तीखा दर्द उठा हो तो उस दर्द मे मुक्ति से पहले सहज होना ही कठिन है, ब्लॉग जैसी रचनात्मकता का खयाल बहुत दूर की बात है। टीवी पर कोई भी न्यूज चैनल देख लो, सभी की टीआरपी पर मोदी का ‘दीदी ओ दीदी’ चढाव पर है। रैली में भीड़ हर पिछले रिकॉर्ड को तोड़कर जैसे नया कुछ कर दिखाने को उछल रही है। ‘दीदी ओ दीदी’ बंगाल की सीमाएं तोड़कर पूरे देश के लिए व्यापक मजाक का विषय बन गया है। खुद दीदी के रणनीतिकार बने प्रशान्त किशोर अगर मोदी के पक्ष में चमत्कारी बातें कहते हैं तो उसके अर्थ निकालना बनता है।
- माना कि ‘चमत्कार को नमस्कार’ जन गण मन की परम्परागत आदत है; किन्तु प्रशान्तकिशोर जैसे बुद्धिजीवी अगर यह कह दें कि 10 से 25 प्रतिशत लोग मोदी को भगवान मानते हैं तो हद ही हो गई। हँसेगी दुनियाँ आम भारतीय पर। अब ज़ी-न्यूज इसी टेप को बार बार पूरी दुनियां को सुना भी रही है, तो इस विज्ञानयुग में भारत के बारे में कैसी हास्यास्पद छवि बनेगी। चलिए, भारत को छोड़िए, खुद मोदी कितने हास्यास्पद हो जाते हैं इस चर्चा से। भले ही भाजपा गद्गगदायमान हो जाए, या अनेक शुभमार्गी शक्तियों को साधक की इस टिपणि से चोट पहुँचे, पर इससे बचा जाना सबके भले में होगा।
- ममताजी की विदाई तो साफ़ दिखाई देती है, किन्तु उनकी विजीगिषा का अभिनन्दन है, अब भी जी जान लड़ा रही है। मैदान छोड़ गए कई दिग्गज मोदी की आँधी में। काँग्रेस-लेफ़्ट सहित बीसीयों क्षेत्रीय दल और दिग्गज अपनी अन्तिम साँसें गिनते हैं: तब भी ममता डटी है, वाह।
- शुभ संकेत हैं कि मुस्लिम वर्ग टुकड़े-टुकड़े हो गया। पूरे विश्व के लिए आतंक का पर्याय बने इस्लाम का हरा रंग भारत में क्रमशः भगवा बनता जा रहा है। अब हरे से भगवा बनने की रासायनिक-भौतिक प्रक्रिया क्या है, इस पर तो पूरी रिसर्च किताब बन जायेगी। भारत के मुस्लिमों का भारतीयकरण आवश्यक है, शुभ है, स्वागत योग्य है।
- बंगाल की राजनीति आजादी के बाद से ही मुस्लिम तुष्टिकरण के एक सूत्रीय अभियान पर चली। कहावत सुनी होगी आप सबने – ‘बंगाल में मुसलमान हर कानून से ऊपर है, उसके लिए कोई जेल बनी ही नहीं’। इस चुनाव अभियान में पहली बार दोयम पायदान पर सहमे खड़े हिन्दू मन को सुखद आभाष हुआ है कि उसकी भी अब सुनी जाएगी। प्रशान्त किशोर के इस आंकलन पर बधाई।
- दीदी के चाणक्य प्रशांत किशोर का विश्लेषण अधूरा है। दीदी के व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को साफ़ बचा ले गए पीके। उनकी जन्मजात गुण्डई, उनकी तर्कातीत जिद्द, दीदी का बगदीदी स्वरुप, मूर्खताओं के परे का अहंकार और उनका संविधान पर हावी होने का बचकानापन। पता नहीं दीदी के नमक का फ़र्ज अदा किया हो।
- राजनीती के खाते से अनेक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक/राष्ट्रीय आयाम उद्घाटित हुए, इस पर कुछ बातें छन्द में कही जाए, तो कम शब्दों में महत्वपूर्ण आनन्दप्रद निष्कर्ष बन सकेंगे –