एलोपैथी और पाकिस्तान – Allopathy and Pakistan

“भारतीय सांस्कृतिक मानदण्डों का मजाक बनाना एलोपैथी तन्त्र के अस्तित्व के लिए वैसे ही आवश्यक है, जैसे पाकिस्तान के लिए हिन्दू-विरोध को बनाये रखना। जैसे जैसे विश्व-मानव भारतीय योग-आयुर्वेद वाली जीवनशैली के प्रति आकर्षित हो रहे हैं; एलोपैथी-पाकिस्तान सहित अनेक भ्रमों का निराकरण-निरसन हो रहा है। देखना है कि पहले पाकिस्तान जाता है या एलोपैथी? इनका जाना उतना ही तय है, जितना सूरज के उगते ही अंधेरे का गायब होना।“

आज के दिन अर्थात डॉक्टर्स डे पर शिशु साधक की यह दूसरी पोस्ट भी देश-विदेश के अनेक मित्रों को चुभ गई। इस पोस्ट का विरोध करने वाले अनेक मुस्लिम मित्र भी सामने आये। पाकिस्तान के साथ भारत के मुसलमानों का सहानुभूतिपूर्ण रवैया  इन आम मुस्लिम मित्रों की आपत्ति में स्पष्ट हुआ। टिपणि के पक्ष में –

  1.  एलोपैथी और पाकिस्तान दोनों भारत थोपे हुए आयाम हैं

    एलोपैथी और पाकिस्तान दोनों भारत की सहज स्वीकृतियां नहीं, बल्कि षड़यन्त्रपूर्वक थोपे हुए आयाम हैं; सृष्टि-नियमों के विरुद्ध हैं; मानव की खलबुद्धि की उपज हैं।

  2. एलोपैथी दिखावेपूर्ण जीने के ढंग में उतरकर नकली सोच बना, और पांचों तत्वों को प्रदूषित कर गया। जहर भरा हवा, पानी, भोजन और जहरीली स्वार्थ-केन्द्रित सोच ऐसा दुश्चक्र बना कि सब एक-दूसरे का पोषण करते हुए अन्ततः दुनियांभर में छा गया। मां के स्तन से उतरता दूध तक विषाक्त हुआ, तो प्रकृति ने कोरोना वायरस का सहारा लिया है। उसी तरह पाकिस्तान-जनित  आतंक भी सारी दुनियां पर संकट बनकर, सब तरफ़ से पिटा और अब खुद पाकिस्तानी मुसलमानो के बीच ही मारकाट मचाने लगा है। कोरोना के बहाने दुनियां के 800 करोड़ मानव घर में सिमटे और मुसलमान अपने मूल केन्द्रों पर आकर आत्म-समीक्षा को तैयार हुए हैं। एलोपैथी और पाकिस्तान का यह अन्तर्संघर्ष आत्मघाती बनता है।

  3. दोनों सृष्टि-नियमों के प्रत्यक्ष विरोधी हैं। इनका  मिटना धरती के अस्तित्व-रक्षण हित आवश्यक है।

  4. पौराणिक भाषा में कहा जा सकता है कि ये दोनों ऐसे चमत्कारी महादानव हैं जो किसी दूसरे के मारे नहीं मरते; बल्कि बाहरी विरोध से इनकी ताकत और बढ जाती है। रावण के मस्तक जितनी बार कटकर गिरते, तत्काल नये रूप में नया सिर पैदा हो जाता जो पहले से अधिक खतरनाक और ताकतवर हो जाता है; डेल्टा वैरिएण्ट की तरह दुर्जेय बनकर डराता है। इस्लाम और एलोपैथी जीवनशैली की नाभि में स्थित अमृतघट को पहचानकर उसे सुखाना पड़ेगा। जारी है प्रक्रिया।

  5. कोरोना वायरस ने पाकिस्तान और एलोपैथी तन्त्र दोनों की कलई उतार दी, इनकी निरर्थकता और इन दोनों के दुष्फ़ल विश्व-मानव के समक्ष स्पष्ट हुए। सामूहिक समीक्षाएं और आत्म-मन्थन जारी हैं, सुफ़ल मिलने ही हैं। संवादात्मक विमर्ष जारी रहे, यह भारत की जिम्मेदारी है; और अकेले भारत में ही वैचारिक स्वतन्त्रता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और मीडिया पर मन्थन जारी है। भारत की इस उदारता का प्रभाव विश्व के सुधीजन श्रद्धा सहित देखते हैं, दुर्जन और दुष्ट समूह इस सहिष्णुता और उदारता का सहारा पाकर अपने षड़यन्त्र भी चला रहे हैं। न्यूयार्क टाईम्स, वाशिंगटन पोस्ट और ट्विटर इस  षड़यन्त्र के हस्तक स्पष्ट हैं।

  6. भारत का विरोध मूलतः सनातन दैवीय संस्कृति का विरोध है। दोनों महादानवों का भारत-विरोधी अभियान रामायण-महाभारत को काल सहित सम्पूर्णता में सामने ले आता है। हर धर्मयुद्ध का परिणाम ‘सद्रक्षणाय दुर्जन विनाशाय’ होता है। वर्तमान महाभारत का परिणाम सृष्टि-नियमानुसार तय है। जो जिस मोर्चे पर सहज रूप से नियुक्त है, उसी मोर्चे पर जीत का विश्वास लेकर सतत जागृत-सक्रिय रहे, अन्तिम जय का उद्घोष तो गीता के अन्तिम मन्त्र में सबको आश्वस्त करता ही है – “यत्र योगेश्वरो कृष्णः यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीविजयोर्भूति, धुर्वा नीतिर्मतिर्मम।“

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