“आज डाक्ट’र्स डे। आप सभी मित्र शिशु साधक के अनेक प्रश्नों/समस्याओं के हल में सहयोगी बने। मानसिक,बौद्धिक, भावनात्मक स्तर पर चिकित्सा-उपचार किया; फ़लतः साधक तन-मन से स्वस्थ है। आप सबका अभिनन्दन है।  विशेषकर इसलिए भी कि एलोपैथी शैली के डाक्टरों से भिन्न आपने न तो कभी कोई फ़ीस ली, न ही अपने उपचार को जबरन, बिना समझाये थोपा; बल्कि शिशु के स्वतन्त्र निर्णय का मान रखा। एलोपैथी जीवनशैली के डाक्टर मित्र इस अभिनन्दन से  सेफ़-सामाजिक-डिस्टेंस बनाए रखें; यह कोरोना काल के आपके बनाए नियम हैं; अवश्य पालन करें।“

साधक ने कू, वाट्सएप और फ़ेसबुक पर ऐसी पोस्ट की तो कुछ मित्रों ने आश्चर्य और निकटस्थ एलोपैथी डॉक्टर मित्रों ने रोष व्यक्त किया।  ट्विटर को कुछ दिनों से दूर रखा है। एलोपैथी जीवनशैली का एक सशक्त पोषक मित्र है ट्विटर। अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए कुछ सर्व-सामान्य बिन्दु देखें –

  1.  भारत में 26 से ज्यादा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां व्यवहार में आती हैं, आठ विधियों पर इस शोधार्थी साधक ने स्वयं सफ़ल प्रयोग किए हैं, जानने की कोशिश की है। एलोपैथी को छोड़कर सभी पद्धतियां रोगी के सोचने-जीने के ढंग को जानकर रोग का निदान करती है, जबकि एलोपैथी अकेली अपूर्ण पद्धति है जो सिर्फ़ तात्कालिक लक्षणों के आधार पर दवा सुझा देती है। रोगी का पेटदर्द ठीक हो या न हो, दवा शरीर के अन्य अंगों को नया रोग अवश्य देती हैं।

  2. सबसे महँगी चिकित्सा पद्धति है, और निर्मम लालची भी। बिना पैसे के मुर्दे का अन्तिम संस्कार न होने दे। भारत में तो मरे व्यक्ति को वेण्टीलेटर पर रखकर बिल बढाने के सैंकड़ों उदाहरण जन-गण-मन पर घाव की तरह टीस देते हैं। आयुर्वेद, होम्योपैथ, यूनानी, प्राकृतिक आदि किसी विधा के माथे पर यह कलंक न मिले। इन सबको झोलाछाप कहकर बदनाम करती है एलोपैथी।

  3. एक कहावत आम बन गई है कि डाक्टर और वकील अपने ग्राहकों को मृत्यु तक पकड़े रहते हैं। मृत्यु के बाद भी परिजनों पर आर्थिक बकाया-वसूली चलती है।

  4. एलोपैथी जीवनशैली ने घर-घर की प्रमाणित डॉक्टर नानियों-दादियों और घर के भैषजालय = औषधालय को बेकार बना दिया।

  5. सर्जरी और रोग-निरोधक टीकों को एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से जोड़ना भूल है। सर्जरी एक कला है जबकि निरोधक टीके विज्ञान की उपलब्धि है। एलोपैथी तन्त्र रोबोट या रट्टू तोते की तरह मियां मिट्ठू बने हैं।

  6. एलोपैथी में नई शोध कोविड की तरह पहले बीमारी देने वाले वायरसों को फ़ैलाती है, फ़िर पैसा कमाने की नीयत से औषधि देती है। इस दुश्चक्र से जन-गण कभी रोग-मुक्त नहीं हो सकता।

  7. भारतीय सांस्कृतिक मानदण्डों का मजाक बनाना एलोपैथी तन्त्र के अस्तित्व के लिए वैसे ही आवश्यक है, जैसे पाकिस्तान के लिए हिन्दू-विरोध को बनाये रखना। जैसे जैसे विश्व-मानव भारतीय योग-आयुर्वेद वाली जीवनशैली के प्रति आकर्षित हो रहे हैं; एलोपैथी-पाकिस्तान सहित अनेक भ्रमों का निराकरण-निरसन हो रहा है। देखना है कि पहले पाकिस्तान जाता है या एलोपैथी?

  8. मानवीय समस्याओं का सर्वशुद्ध समाधान से कम पर कोई समझौता करना अब किसी को भी स्वीकार नहीं होता। समय स्वयं ही मानव को सही की दिशा में बुलाता है, आगे बढाता है। एलोपैथी नामक चिकित्सा पद्धति में कार्यरत भारतीय संस्कृति के आराधक व्यक्ति इस पद्धति के मानवोपयोगी पक्ष को आयुर्वेद आदि के साथ योग करें, मानवता को एलोपैथी जीवनशैली के शिकंजे से मुक्त करने में सहयोगी बनें, यही शुभकामना है।

असहमतियों का स्वागत है। सार्थक संवाद की कामना है। शिशु साधक सही को स्वीकारने हित उत्सुक है।

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