अभी ब्रह्म-मुहुर्त में सुनी यह बानी, चौका शैली में आपके साथ बाँटने का मन हुआ तो ब्लॉग कर देता हूँ। नहीं जानता कि किसी ब्रह्म की पुकार है या अपने बनाये किसी भ्रम की। पास-पास लगते हैं दोनों – ‘ब्र्हम या भ्रम’। कोरोना वायरस में ब्रह्म की चाहत सुनना सहज ही पागलपन कहा जाएगा; जो है सो है। बाहर देखती; भागती जीवनशैली में कहाँ सुनाई देगा कि बार-बार यह जानलेवा वायरस अपना रुप क्यों बदल लेता है? इस वायरस को बाहर जाकर सादर लिवा लाया जाता है घर में और फ़िर करो इसका आदर-सत्कार सारे परिजन एकसाथ एकान्त साधनापूर्वक! मरते मर जाएंगे, किन्तु अपनी यह प्रकृति-विरोधी जीवनशैली न छोड़ेंगे! वैज्ञानिक-चिकित्सक देते रहें नसीहतें! है ना मोदीजी! फ़िर हमें क्या चिन्ता है? अरे भगवान तक की नहीं सुनते तो तुम क्या चीज हो यार मोदी?
और यह लिखते लिखते ही सुपुत्र-बहूरानी बच्चों को लेकर बाहर नाश्ता करने निकल गए! जी, पूरे सज-धजकर; कल ही अमेजोन से आए नए वस्त्र पहनकर बुलाने इस प्रिय मेहमान को! अब भी न आए कोरोना तो कोई क्या कर लेगा इनका? फ़िर से नया प्रयत्न जारी रहना है।