मन की बात’ की 32वीं कड़ी में प्रधानमंत्री का संबोधन
28 May, 2017
मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार।
इस वर्ष की गर्मी शायद ही हम भूल पाएँगे। लेकिन वर्षा की प्रतीक्षा हो रही है। आज जब मैं आप से बात कर रहा हूँ तब, रमज़ान का पवित्र महीना प्रारम्भ हो चुका है। रमज़ान के पवित्र महीने के आगमन पर, मैं भारत और विश्व-भर के लोगों को, विशेष करके मुस्लिम समुदाय को, इस पवित्र महीने की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। रमज़ान में prayer, spirituality और charity को काफी महत्व दिया जाता है। हम हिन्दुस्तानी बहुत ही भाग्यवान हैं कि हमारे पूर्वजों ने ऐसी परंपरा निर्माण की कि आज भारत इस बात का गर्व कर सकता है, हम सवा-सौ करोड़ देशवासी इस बात का गर्व कर सकते हैं कि दुनिया के सभी सम्प्रदाय भारत में मौजूद हैं। ये ऐसा देश है जो, ईश्वर में विश्वास करने वाले लोग भी और ईश्वर को नकारने वाले लोग भी, मूर्ति पूजा करने वाले भी और मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले भी, हर प्रकार की विचारधारा, हर प्रकार की पूजा पद्धति, हर प्रकार की परंपरा, हम लोगों ने एक साथ जीने की कला आत्मसात की है। और आखिरकार धर्म हो, सम्प्रदाय हो, विचारधारा हो, परंपरा हो, हमें यही सन्देश देते हैं – शान्ति, एकता और सद्भावना का। ये रमज़ान का पवित्र महीना शान्ति, एकता और सद्भावना के इस मार्ग को आगे बढ़ाने में ज़रूर सहायक होगा। मैं फिर एक बार सबको शुभकामनाएं देता हूँ।
पिछली बार जब मैं ‘मन की बात’ कर रहा था। तो मैंने एक शब्द प्रयोग किया था कि और खासकरके नौजवानों को कहा था, कुछ नया करें, comfort zone से बाहर निकलिए, नये अनुभव लें, और यही तो उम्र होती है ज़िन्दगी को इस प्रकार से जीना, थोड़ा risk लेना, कठिनाइयों को न्योता देना। मुझे खुशी हो रही है कि बहुत सारे लोगों ने मुझे feedback दिया। व्यक्तिगत रूप से मुझे अपनी बात बताने का उत्साह सबने दिखाया। मैं हर चीज़ को तो पढ़ नहीं पाया हूँ, हर किसी के सन्देश को सुन भी नहीं पाया हूँ, इतने ढ़ेर सारी चीज़ें आई हैं। लेकिन, मैंने सरसरी नज़र से भी जो देखा – किसी ने संगीत सीखने का प्रयास किया है, कोई नये वाद्य पर हाथ आज़मा रहा है, कुछ लोग you tube का उपयोग करते हुए नयी चीज़ें सीखने का प्रयास कर रहे हैं, नयी भाषा सीखने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ लोग cooking सीख रहे हैं, कुछ नृत्य सीख रहे हैं, कुछ drama सीख रहे हैं, कुछ लोगों ने तो लिखा है कि हमने अब कविताएँ लिखना शुरू की हैं। प्रकृति को जानना, जीना, समझना उस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। मुझे बहुत ही आनंद हुआ और मैं एक फ़ोन कॉल तो आपको भी सुनाना चाहूँगा:
“दीक्षा कात्याल बोल रही हूँ। मेरी पढ़ने की आदत लगभग छूट ही चुकी थी, इसलिए इन छुट्टियों में मैंने पढ़ने की ठानी। जब मैंने स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पढ़ना शुरू किया, तब मैंने अनुभव किया कि भारत को आजादी दिलाने में कितना संघर्ष करना पड़ा है, कितना बलिदान देना पड़ा है, कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने जेलों में वर्षों बिताए। मैं भगत सिंह, जिन्होंने बहुत कम उम्र में बहुत कुछ हासिल किया, उससे काफी प्रेरित हुई हूँ, इसलिए मैं आपसे अनुरोध कर रही हूँ कि इस विषय में आप आज की पीढ़ी को कुछ सन्देश दें।”
मुझे खुशी है कि युवापीढ़ी हमारे इतिहास को, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को, इस देश के लिए बलिदान देने वाले लोगों को, उनके विषय में जानने में रूचि रख रही है। अनगिनत महापुरुष, जिन्होंने जवानी जेलों में खपा दी, कई नौजवान फांसी के तख़्त पर चढ़ गए। क्या कुछ नहीं झेला और तभी तो आज हम आज़ाद हिन्दुस्तान में सांस ले रहे हैं। एक बात हमने देखी होगी कि आज़ादी के आन्दोलन में जिन-जिन महापुरुषों ने जेलों में समय बिताया, उन्होंने लेखन का, अध्ययन का, बहुत बड़ा काम किया और उनकी लेखनी ने भी भारत की आज़ादी को बल दिया।
बहुत वर्षों पहले मैं अंडमान निकोबार गया था। सेलुलर जेल देखने गया था। आज वीर सावरकर जी की जन्म जयन्ती है। वीर सावरकर जी ने जेल में ‘माज़ी जन्मठे’ किताब लिखी थी। कविताएँ लिखते थे, दीवारों पर लिखते थे। छोटी सी कोठरी में उनको बंद कर दिया गया था। आज़ादी के दीवानों ने कैसी यातनाएँ झेली होंगी। जब सावरकर जी की ‘माज़ी जन्मठे’ एक किताब मैंने पढ़ी और उसी से मुझे सेलुलर जेल देखने की प्रेरणा मिली थी। वहाँ एक light and sound show भी कार्यक्रम चलता है, वो बड़ा ही प्रेरक है। हिन्दुस्तान का कोई राज्य ऐसा नहीं था, हिन्दुस्तान की कोई भाषा बोलने वाला नहीं होगा जो आज़ादी के लिए काले पानी की सजा भुगतता हुआ अंडमान की जेल में, इस सेलुलर जेल में, अपनी जवानी न खपाई हो। हर भाषा बोलने वाले, हर प्रांत के, हर पीढ़ी के लोगों ने यातनाएँ झेली थी। आज वीर सावरकर जी की जन्म जयन्ती है। मैं देश की युवापीढ़ी को ज़रूर कहूँगा कि हमें जो आज़ादी मिली है उसकी कैसी यातना लोगों ने झेली थी, कितने कष्ट झेले थे, अगर हम सेलुलर जेल जाकर देखें, काला पानी क्यों कहा जाता था! जाने के बाद ही पता चलता है। आप भी कभी मौका मिले तो, एक प्रकार से हमारी आज़ादी की जंग के तीर्थ क्षेत्र हैं, ज़रूर जाना चाहिए।
मेरे प्यारे देशवासियों, 5 जून, महीने का पहला सोमवार है। वैसे तो सब कुछ सामान्य है, लेकिन 5 जून, एक विशेष दिवस है क्योंकि ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में उसे मनाया जाता है और इस वर्ष UN ने इसका theme रखा है – ‘Connecting People to Nature’। दूसरे शब्दों में कहें तो back to basics और nature से connect का मतलब क्या है? मेरी दृष्टि से मतलब है – ख़ुद से जुड़ना, अपने आप से connect होना। nature से connect का मतलब है – better planet को nurture करना। और इस बात को महात्मा गाँधी से ज़्यादा अच्छे से कौन बता सकता है। महात्मा गाँधी जी कई बार कहते थे – “One must care about a world one will not see” अर्थात् हम जो दुनिया नहीं देखेंगे, हमारा कर्त्तव्य है कि हम उसकी भी चिंता करें, हम उसकी भी care करें।
प्रकृति की एक ताक़त होती है, आपने भी अनुभव किया होगा कि बहुत थक करके आए हो और एक गिलास भर पानी अगर मुहँ पर छिड़क दें, तो कैसी freshness आ जाती है। बहुत थक करके आए हो, कमरे की खिड़कियाँ खोल दें, दरवाज़ा खोल दें, ताज़ा हवा की सांस ले लें – एक नयी चेतना आती है। जिन पंच महाभूतों से शरीर बना हुआ है, जब उन पंच महाभूतों से संपर्क आता है, तो अपने आप हमारे शरीर में एक नयी चेतना प्रकट होती है, एक नयी ऊर्जा प्रकट होती है। ये हम सबने अनुभव किया है, लेकिन हम उसको register नहीं करते हैं, हम उसको एक धागे में, एक सूत्र में जोड़ते नहीं हैं। इसके बाद आप ज़रूर देखना कि आपको जब-जब प्राकृतिक अवस्था से संपर्क आता होगा, आपके अन्दर एक नयी चेतना उभरती होगी और इसलिए 5 जून का प्रकृति के साथ जुड़ने का वैश्विक अभियान, हमारा स्वयं का भी अभियान बनना चाहिये। पर्यावरण की रक्षा हमारे पूर्वजों ने की, उसका कुछ लाभ हमें मिल रहा है। अगर हम रक्षा करेंगे तो हमारी आने वाली पीढ़ियों को लाभ मिलेगा।
वेदों में पृथ्वी और पर्यावरण को शक्ति का मूल माना गया है। हमारे वेदों में इसका वर्णन मिलता है। और अथर्ववेद तो पूरी तरह, एक प्रकार से पर्यावरण का सबसे बड़ा दिशा-निर्देशक ग्रंथ है और हज़ारों साल पहले लिखा गया है। हमारे यहाँ कहा गया है – ‘माता भूमिः पुत्रो अहम् पृथिव्याः’। वेदों में कहा गया है कि हम में जो purity है वह हमारी पृथ्वी के कारण है। धरती हमारी माता है और हम उनके पुत्र हैं। अगर हम भगवान् बुद्ध को याद करें तो एक बात ज़रूर उजागर होती है कि महात्मा बुद्ध का जन्म, उन्हें ज्ञान की प्राप्ति और उनका महा-परिनिर्वाण, तीनों पेड़ के नीचे हुआ था। हमारे देश में भी अनेक ऐसे त्योहार, अनेक ऐसी पूजा-पद्धति, पढ़े-लिखे लोग हों, अनपढ़ हो, शहरी हो, ग्रामीण हो, आदिवासी समाज हो, प्रकृति की पूजा, प्रकृति के प्रति प्रेम एक सहज समाज जीवन का हिस्सा है लेकिन हमें उसे आधुनिक शब्दों में आधुनिक तर्कों के साथ संजोने की ज़रूरत है।
इन दिनों मुझे राज्यों से ख़बरें आती रहती हैं। क़रीब-क़रीब सभी राज्यों में वर्षा आते ही वृक्षारोपण का एक बहुत बड़ा अभियान चलता है। करोड़ों की तादात में पौधे लगाये जाते हैं। स्कूल के बच्चों को भी जोड़ा जाता है, समाज-सेवी संगठन जुड़ते हैं, NGOs जुड़ते हैं, सरकार स्वयं initiative लेती है। हम भी इस बार इस वर्षा ऋतु में वृक्षारोपण के इस काम को बढ़ावा दें, योगदान दें।
मेरे प्यारे देशवासियों, 21 जून, अब दुनिया के लिये 21 जून जाना-पहचाना दिन बन गया है। विश्व योग दिवस के रूप में पूरा विश्व इसे मनाता है। बहुत कम समय में 21 जून का ये विश्व योग दिवस हर कोने में फ़ैल चुका है, लोगों को जोड़ रहा है। एक तरफ़ विश्व में बिखराव की अनेक ताक़तें अपना विकृत चेहरा दिखा रही हैं, ऐसे समय में विश्व को भारत की एक बहुत बड़ी देन है। योग के द्वारा विश्व को एक सूत्र में हम जोड़ चुके हैं। जैसे योग, शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा को जोड़ता है, वैसे आज योग विश्व को भी जोड़ रहा है। आज जीवनशैली के कारण, आपा-धापी के कारण, बढ़ती हुई ज़िम्मेवारियों के कारण, तनाव से मुक्त जीवन जीना मुश्किल होता जा रहा है। और ये बात देखने में आई छोटी-छोटी आयु में भी, ये स्थिति पहुँच चुकी है। अनाप-शनाप दवाइयाँ लेते जाना और दिन गुज़ारते जाना, ऐसी घड़ी में तनाव-मुक्त जीवन जीने के लिए योग की भूमिका अहम है। योग wellness और fitness दोनों की guarantee है। योग सिर्फ व्यायाम नहीं है। तन से, मन से, शरीर से, विचारों से, आचार से स्वस्थता की एक अंतर्यात्रा कैसे चले – उस अंतर्यात्रा को अनुभव करना है तो योग के माध्यम से संभव है। अभी दो दिन पहले ही मैंने योग दिवस को लेकर के विश्व की सभी सरकारों को, सभी नेताओं को चिट्ठी लिखी है।
पिछले वर्ष मैंने योग से संबंधित कुछ स्पर्धाओं की घोषणा की है, कुछ इनामों की घोषणा की है। धीरे-धीरे उस दिशा में काम आगे बढ़ेगा। मुझे एक सुझाव आया है और ये मौलिक सुझाव देने वालों का मैं अभिनंदन करता हूँ। बड़ा ही interesting सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि ये तीसरा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है और मुझे कहा कि आप अपील करें कि इस बार तीसरा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर एक ही परिवार की तीन पीढ़ी एक साथ योग करे। दादा-दादी हो या नाना-नानी हो, माता-पिता हो, बेटे-बेटी हो, तीनों पीढ़ी एक साथ योग करें और उसकी तस्वीर upload करें। कल, आज और कल एक ऐसा सुभग संयोग होगा कि योग को एक नया आयाम मिलेगा। मैं इस सुझाव के लिए धन्यवाद करता हूँ और मुझे भी लगता है कि जैसे हम लोगों ने selfie with daughter का अभियान चलाया था और एक बड़ा ही रोचक अनुभव आया था। ये तीन पीढ़ी की तस्वीर योगा करती हुई तस्वीर ज़रूर देश और दुनिया के लिए कौतुक जगाएगी। आप ज़रूर NarendraModiApp पर, MyGov पर तीन पीढ़ी जहाँ-जहाँ योग करती हो, तीनों पीढ़ी के लोग एक साथ मुझे तस्वीर भेजें। कल, आज और कल की ये तस्वीर होगी, जो सुहाने कल की guarantee होगी। मैं आप सबको निमंत्रित करता हूँ। अभी अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के लिये क़रीब तीन सप्ताह हमारे पास हैं। आज ही practice में लग जाइए। मैं 01 जून से twitter पर daily योग के संबंध में कुछ-न-कुछ post करूँगा और लगातार 21 जून तक post करता रहूँगा, आप से share करूँगा। आप भी तीन सप्ताह लगातार योग के विषय को प्रचारित करिए, प्रसारित करिए, लोगों को जोड़िए। एक प्रकार से ये preventive health care का आंदोलन ही है। मैं निमंत्रित करता हूँ आप सब को इसमें जुड़ने के लिए।
जब से आप लोगों ने मुझे प्रधान सेवक के रूप में कार्य की ज़िम्मेदारी दी है और लाल किले पर से, जब पहली 15 अगस्त थी मेरी, मुझे पहली बार बोलने का अवसर मिला था। स्वच्छता के संबंध में मैंने बात कही थी। तब से लेकर के आज तक हिंदुस्तान के अलग-अलग भागों में मेरा प्रवास होता है और मैंने देखा है कि कुछ लोग बारीकी से मोदी क्या करते हैं? मोदी कहाँ जाते हैं? मोदी ने क्या-क्या किया? बराबर follow करते हैं। क्योंकि मुझे एक बड़ा interesting phone call आया और मैंने भी शायद इस प्रकार से चीज़ को सोचा नहीं था लेकिन इस बात को उन्होंने जो पकड़ी, इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। ये phone call से आपको भी ध्यान में आएगा:
“प्रणाम मोदी जी, मैं नैना मुंबई से। मोदी जी T.V. पर और Social Media में आज कल मैं हमेशा देखती हूँ आप जहाँ भी जाते हैं वहाँ के लोग साफ़-सफाई पर विशेष ध्यान देते हैं। मुंबई हो या सूरत आपके आह्वान पर लोगों ने सामूहिक रूप से स्वच्छता को एक mission के रूप में अपनाया है। बड़े तो बड़े, बच्चों में भी स्वच्छता को लेकर जागरूकता आई है। कई बार उन्हें सड़क पर बड़ों को गंदगी फैलाते हुए, टोकते हुए देखा है। काशी के घाटों से जो आपने स्वच्छता की एक मुहिम शुरू की थी, वो आपकी प्रेरणा से एक आंदोलन का रूप ले चुकी है।
आपकी बात सही है कि मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ। वहाँ सरकारी मशीनरी तो सफाई का काम करती है लेकिन इन दिनों समाज में भी एक सफाई का उत्सव बन जाता है। मेरे जाने के पाँच दिन पहले, सात दिन पहले, दस दिन पहले, काफी मात्रा में सफाई के कार्यक्रम होते हैं। मीडिया भी उसको बड़ा प्राधान्य देता है। अभी मैं कुछ दिन पहले कच्छ गया था गुजरात में। बहुत बड़ा सफाई अभियान चला वहाँ। मैंने भी इसको जोड़ कर के नहीं देखा था। लेकिन जब ये phone call आया तो मैं भी सोचने लगा और मैंने देखा कि हाँ ये बात सही है। आप कल्पना कर सकते हैं, मुझे कितना आनंद होता है इस बात को जानकर के और देश भी इन चीज़ों को कैसे बढ़िया ढंग से notice कर रहा है। मेरे लिए इससे बढ़कर के क्या खुशी होगी कि मेरी यात्रा से भी स्वच्छता को जोड़ दिया गया है। प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए बाकी जो तैयारियाँ होने की आदत होगी-होगी, लेकिन स्वच्छता प्रमुख बात होगी। ये अपने आप में किसी भी स्वच्छता-प्रेमी के लिए आनंदायक है, प्रेरक है। मैं इस स्वच्छता के काम को बल देने वाले सभी को बधाई देता हूँ।
किसी ने मुझे एक सुझाव दिया। वैसे वो बड़ा मज़ाकिया सुझाव है। मैं नहीं जानता हूँ, मैं इसको कर पाऊंगा कि नहीं कर पाऊंगा। मोदी जी अब आप प्रवास तय करते समय, जो भी प्रवास माँगे, उनको कहो कि भई अगर मुझे बुलाना है तो स्वच्छता का स्तर कैसा होगा ? कितना टन कूड़ा-कचरा आप मुझे भेंट करोगे ? उसके आधार पर मैं अपना प्रवास तय करूँ। Idea बहुत अच्छा है लेकिन मुझे सोचना पड़ेगा। लेकिन ये बात सही है कि ये movement तो बनना चाहिए कि और चीजें भेंट-सौगात में देने की बजाय अच्छा ही होगा कि हम भेंट-सौगात में इतना टन कूड़ा-कचरा सफाई कर के दे देंगें। कितने लोगों को हम बीमार होने से बचाएँगे। कितना बड़ा मानवता का काम होगा।
एक बात मैं ज़रूर कहना चाहूँगा कि ये जो कूड़ा-कचरा है, इसको हम waste न मानें, वो wealth है, एक resource है। इसे सिर्फ garbage के रूप में न देखें। एक बार इस कूड़े-कचरे को भी हम wealth मानना शुरू करेंगें तो waste management के कई नए-नए तरीके हमारे सामने आयेंगे। Start-Up में जुड़े हुए नौजवान भी नई-नई योजनाएँ लेकर के आएंगे। नए-नए equipment लेकर कर के आएँ। भारत सरकार ने राज्य सरकारों की मदद के साथ शहरों के जनप्रतिनिधियों की मदद के द्वारा waste management का एक बड़ा महत्वपूर्ण अभियान शुरू करना तय किया है।
5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस पर देश के करीब 4 हज़ार नगरों में solid waste, liquid waste इसको collect करने के लिए उस प्रकार के साधन उपलब्ध होने वाले हैं। दो प्रकार के कूड़ेदान उपलब्ध होंगे, एक green colour का, दूसरा blue colour का। दो प्रकार के waste निकलते हैं – एक liquid waste होता है और एक dry waste होता है। अगर हम discipline follow करें, इन चार हज़ार नगरों में, ये जो कूड़ेदान रखे जाने वाले हैं। सूखा कचरा नीले कूड़ेदान में डालें और गीला कचरा हरे कूड़ेदान में डालें। जैसे kitchen का जो waste निकलता है, साग-सब्जियों के छिलके हों, बचा हुआ भोजन हो, अंडे के छिलके हों, पेड़-पौधों के पत्ते आदि हों ये सारे गीले waste हैं और उसको हरे कूड़ेदान में डालें। ये सारी चीज़ें ऐसे हैं जो खेत में काम आती हैं। अगर खेत का रंग हरा, इतना याद रखोगे तो हरे कूड़ेदान में क्या डालना है वो याद रह जाएगा। और दूसरा कूड़ा-कचरा ये है जैसे रद्दी-काग़ज है, गत्ता है, लोहा है, कांच है, कपड़ा है, plastic है, polythene है, टूटे हुए डब्बे हैं, रबड़ है, धातुएँ है, कई चीज़े होंगी – ये सारी चीज़ें एक प्रकार से सूखा कचरा है। जिसको machine में डाल करके recycle करना पड़ता है। वैसे वो कभी उपयोग नहीं आ सकता। उसको नीले कूड़ेदान में डालना है।
मुझे विश्वास है कि हम एक culture develop करेंगे। स्वच्छता की ओर हर बार नये कदम हमें उठाते ही जाना है। तब जा करके हम गाँधी जी जिन सपनों को देखते थे, वो स्वच्छता वाला सपना, हम पूरा कर पाएँगे। आज मुझे गर्व के साथ एक बात का ज़िक्र करना है – एक इंसान भी अगर मन में ठान ले तो कितना बड़ा जन आन्दोलन खड़ा कर सकता है। स्वच्छता का काम ऐसा ही है।
पिछले दिनों आपके कान पर एक ख़बर आई होगी। मुंबई में गंदा माने जाने वाला वर्सोवा beach आज एक साफ़-सुथरा, सुंदर वर्सोवा beach बन गया। ये अचानक नहीं हुआ है। करीब 80-90 सप्ताह तक नागरिकों ने लगातार मेहनत करके वर्सोवा beach का कायापलट कर दिया। हज़ारों टन कूड़ा-कचरा निकाला गया और तब जा करके आज वर्सोवा beach साफ़ और सुंदर बन गया। और इसकी सारी जिम्मेवारी Versova Residence Volunteer (VRV) उन्होंने संभाली थी। एक सज्जन श्रीमान् अफरोज़ शाह अक्टूबर 2015 से, वे जी-जान से इसमें जुट गए। धीरे-धीरे ये कारवाँ बढ़ता चला गया। जन-आन्दोलन में बदल गया। और इस काम के लिए श्रीमान् अफरोज़ शाह को United Nations Environment Programme (UNEP), उन्होंने बहुत बड़ा award दिया। Champions of The Earth Award ये पाने वाले वो पहले भारतीय बने। मैं श्रीमान् अफरोज़ शाह को बधाई देता हूँ, इस आंदोलन को बधाई देता हूँ। और जिस प्रकार से लोक-संग्रह की तरह उन्होंने सारे इलाके के लोगों को जोड़ा और जन आंदोलन में परिवर्तित किया, ये अपने आप में एक प्रेरक उदाहरण है।
भाइयो और बहनों, आज मैं एक और ख़ुशी की बात भी आप से बताना चाहता हूँ। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के सन्दर्भ में जम्मू-कश्मीर का ‘रियासी ब्लॉक’। मुझे बताया गया कि रियासी ब्लॉक open defecation free (खुले में शौच से मुक्त) हुआ है। मैं रियासी ब्लॉक के सभी नागरिकों को, वहाँ के प्रशासकों को जम्मू-कश्मीर ने एक उत्तम उदाहरण दिया है। इसके लिए मैं सबको बधाई देता हूँ। और मुझे बताया गया इस पूरे movement को सबसे ज्यादा lead किया है – जम्मू-कश्मीर के उस इलाके की महिलाओं ने। उन्होंने जागरूकता फ़ैलाने के लिए ख़ुद ने मशाल यात्राएँ निकाली। घर-घर, गली-गली जाकर के लोगों को उन्होंने प्रेरित किया। उन माँ-बहनों को भी मैं ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ, वहाँ बैठे हुए प्रशासकों का भी अभिनन्दन करता हूँ कि जिन्होंने जम्मू-कश्मीर की धरती पर एक ब्लॉक को open defecation free बनाकर के एक उत्तम शुरुआत की है।
मेरे प्यारे देशवासियों, पिछले 15 दिन, महीने से, लगातार अख़बार हो, टी.वी.चैनल हो, social media हो, वर्तमान सरकार के 3 वर्ष का लेखा-जोखा चल रहा है। 3 साल पूर्व आपने मुझे प्रधान सेवक का दायित्व दिया था। ढ़ेर सारे survey हुए हैं, ढ़ेर सारे opinion poll आए हैं। मैं इस सारी प्रक्रिया को बहुत ही healthy signs के रूप में देखता हूँ। हर कसौटी पर इस 3 साल के कार्यकाल को कसा गया है। समाज के हर तबके के लोगों ने उसका analysis किया है। और लोकतंत्र में एक उत्तम प्रक्रिया है। और मेरा स्पष्ट मानना है कि लोकतंत्र में सरकारों को जवाबदेह होना चाहिए, जनता-जनार्दन को अपने काम का हिसाब देना चाहिए। मैं उन सब लोगों का धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने समय निकाल करके हमारे काम की गहराई से विवेचना की, कहीं सराहना हुई, कहीं समर्थन आया, कहीं कमियाँ निकाली गई, मैं इन सब बातों का बहुत महत्व समझता हूँ। मैं उन लोगों को भी धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने critical और important feedback दिये हैं। जो त्रुटिया होती हैं, कमियाँ होती हैं, वो भी जब उजागर होती हैं तो उससे भी सुधार करने का अवसर मिलता है। बात अच्छी हो, कम अच्छी हो, बुरी हो, जो भी हो, उसमें से ही सीखना है और उसी के सहारे आगे बढ़ना है। constructive criticism लोकतंत्र को बल देता है। एक जागरूक राष्ट्र के लिए, एक चैतन्य पूर्ण राष्ट्र के लिए, ये मंथन बहुत ही आवश्यक होता है।
मेरे प्यारे देशवासियों, मैं भी आप की तरह एक सामान्य नागरिक हूँ और एक सामान्य नागरिक के नाते अच्छी-बुरी हर चीज़ का प्रभाव मुझ पर भी वैसा ही होता है, जैसा किसी भी सामान्य नागरिक के मन पर होता है। ‘मन की बात’ कोई उसको एक तरफ़ा संवाद के रूप में देखता है, कुछ लोग उसको राजनीतिक दृष्टि से टीका-टिप्पणी भी करते हैं। लेकिन इतने लम्बे तज़ुर्बे के बाद मैं अनुभव करता हूँ, मैंने जब, ‘मन की बात’ शुरू की तो मैंने भी सोचा नहीं था। ‘मन की बात’ इस कार्यक्रम ने, मुझे हिन्दुस्तान के हर परिवार का एक सदस्य बना दिया है। ऐसा लगता है जैसे मैं परिवार के बीच में ही घर में बैठ करके घर की बातें करता हूँ। और ऐसे सैकड़ो परिवार हैं, जिन्होंने मुझे ये बातें लिख करके भी भेजी हैं।
जैसा मैंने कहा कि एक सामान्य मानव के रूप में, मेरे मन में जो प्रभाव होता है, फिर दो दिन पूर्व राष्ट्रपति भवन में आदरणीय राष्ट्रपति जी, आदरणीय उपराष्ट्रपति जी, आदरणीय स्पीकर महोदया सबने ‘मन की बात’ की, एक Analytical Book का समारोह किया। एक व्यक्ति के नाते, सामान्य नागरिक के नाते, ये घटना मुझे बहुत ही उत्साह बढ़ाने वाली है। मैं राष्ट्रपति जी का, उपराष्ट्रपति जी का, स्पीकर महोदया का आभारी हूँ कि उन्होंने समय निकाल करके, इतने वरिष्ठ पद पर बैठे हुए लोगों ने ‘मन की बात’ को ये अहमियत दी। एक प्रकार से अपने आप में ‘मन की बात’ को एक नया आयाम दे दिया। हमारे कुछ मित्र इस ‘मन की बात’ की किताब पर जब काम कर रहे थे, तो मेरे से भी कभी चर्चा की थी। और कुछ समय पहले जब इसकी बात चर्चा में आई तो मैं हैरान था। अबु धाबी में रहने वाले एक artist अक़बर साहब के नाम से जाने जाते हैं। अक़बर साहब ने सामने से प्रस्ताव रखा कि ‘मन की बात’ में जिन विषयों पर चर्चा हुई है, वो अपनी कला के माध्यम से उसका sketch तैयार करके देना चाहते हैं और एक भी रूपया लिये बिना, अपना प्यार जताने के लिए अक़बर साहब ने मन की बातों को कला का रूप दे दिया। मैं अक़बर साहब का आभारी हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियों, अगली बार जब मिलेंगे तब तक तो देश के हर कोने में बारिश आ चुकी होगी, मौसम बदल गया होगा, परीक्षाओं के परिणाम आ चुके होंगे, नये सिरे से विद्या-जीवन का आरंभ होने वाला होगा, और बरसात आते ही एक नई खुशनुमा, एक नई महक, एक नई सुगंध। आइए, हम सब इस माहौल में प्रकृति के प्रति प्यार करते हुए आगे बढ़ें।
मेरी आप सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। धन्यवाद!