मन की बात’ की 31वीं कड़ी में प्रधानमंत्री का संबोधन
30 Apr, 2017
मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार। हर ‘मन की बात’ से पहले, देश के हर कोने से, हर आयु वर्ग के लोगों से, ‘मन की बात’ को ले करके ढ़ेर सारे सुझाव आते हैं। आकाशवाणी पर आते हैं, Narendra Modi App पर आते हैं, MyGov के माध्यम से आते हैं, फ़ोन के द्वारा आते हैं, recorded message के द्वारा आते हैं। और जब कभी-कभी मैं उसे समय निकाल करके देखता हूँ तो मेरे लिये एक सुखद अनुभव होता है। इतनी विविधताओं से भरी हुई जानकारियाँ मिलती हैं।
देश के हर कोने में शक्तियों का अम्बार पड़ा है। साधक की तरह समाज में खपे हुए लोगों का अनगिनत योगदान, दूसरी तरफ़ शायद सरकार की नज़र भी नहीं जाती होगी, ऐसी समस्याओं का भी अम्बार नज़र आता है। शायद व्यवस्था भी आदी हो गयी होगी, लोग भी आदी हो गए होंगे। और मैंने पाया है कि बच्चों की जिज्ञासायें, युवाओं की महत्वाकांक्षायें, बड़ों के अनुभव का निचोड़, भाँति-भाँति की बातें सामने आती हैं।
हर बार जितने inputs ‘मन की बात’ के लिये आते हैं, सरकार में उसका detail analysis होता है। सुझाव किस प्रकार के हैं, शिकायतें क्या हैं, लोगों के अनुभव क्या हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि मनुष्य का स्वभाव होता है दूसरे को सलाह देने का। ट्रेन में, बस में जाते और किसी को खांसी आ गयी तो तुरंत दूसरा आकर के कहता कि ऐसा करो। सलाह देना, सुझाव देना, ये जैसा मानो हमारे यहाँ स्वभाव में है।
शुरू में ‘मन की बात’ को लेकर के भी जब सुझाव आते थे, सलाह के शब्द सुनाई देते थे, पढ़ने को मिलते थे, तो हमारी टीम को भी यही लगता था कि ये बहुत सारे लोगों को शायद ये आदत होगी, लेकिन हमने ज़रा बारीकी से देखने की कोशिश की तो मैं सचमुच में इतना भाव-विभोर हो गया। ज़्यादातर सुझाव देने वाले लोग वो हैं, मुझ तक पहुँचने का प्रयास करने वाले लोग वो हैं, जो सचमुच में अपने जीवन में कुछ-न-कुछ करते हैं। कुछ अच्छा हो उस पर वो अपनी बुद्धि, शक्ति, सामर्थ्य, परिस्थिति के अनुसार प्रयत्नरत हैं। और ये चीजें जब ध्यान में आयी तो मुझे लगा कि ये सुझाव सामान्य नहीं हैं। ये अनुभव के निचोड़ से निकले हुए हैं। कुछ लोग सुझाव इसलिये भी देतें हैं कि उनको लगता है कि अगर यही विचार वहाँ, जहाँ काम कर रहे हैं, वो विचार अगर और लोग सुनें और उसका एक व्यापक रूप मिल जाए तो बहुत लोगों को फायदा हो सकता है। और इसलिये उनकी स्वाभाविक इच्छा रहती है कि ‘मन की बात’ में अगर इसका ज़िक्र हो जाए। ये सभी बातें मेरी दृष्टि से अत्यंत सकारात्मक हैं।
मैं सबसे पहले तो अधिकतम सुझाव जो कि कर्मयोगियों के हैं, समाज के लिये कुछ-न-कुछ कर गुज़रने वाले लोगों के हैं, मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। इतना ही नहीं मैं किसी बात को जब मैं उल्लेख करता हूँ तो, ऐसी-ऐसी चीजें ध्यान में आती हैं, तो बड़ा ही आनंद होता है।
पिछली बात ‘मन की बात’ में कुछ लोगों ने मुझे सुझाव दिया था food waste हो रहा है, उसके संबंध में चिंता जताई थी और मैंने उल्लेख किया। और जब उल्लेख किया तो उसके बाद Narendra Modi App पर, MyGov पर देश के अनेक कोने में से अनेक लोगों ने, कैसे-कैसे Innovative ideas के साथ food waste को बचाने के लिये क्या-क्या प्रयोग किये हैं। मैंने भी कभी सोचा नहीं था आज हमारे देश में खासकर के युवा-पीढ़ी, लम्बे अरसे से इस काम को कर रही है। कुछ सामाजिक संस्थायें करती हैं, ये तो हम कई वर्षों से जानते आए हैं, लेकिन मेरे देश के युवा इसमें लगे हुए हैं – ये तो मुझे बाद में पता चला। कइयों ने मुझे videos भेजे हैं। कई स्थान हैं जहाँ रोटी बैंक चल रही हैं। लोग रोटी बैंक में, अपने यहाँ से रोटी जमा करवाते हैं, सब्जी जमा करवाते हैं और जो needy लोग हैं वे वहाँ उसे प्राप्त भी कर लेते हैं। देने वाले को भी संतोष होता है, लेने वाले को भी कभी नीचा नहीं देखना पड़ता है। समाज के सहयोग से कैसे काम होते हैं, इसका ये उदाहरण है।
आज अप्रैल महीना पूर्ण हो रहा है, आखिरी दिवस है। 1 मई को गुजरात और महाराष्ट्र का स्थापना दिवस है। इस अवसर पर दोनों राज्यों के नागरिकों को मेरी तरफ़ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं। दोनों राज्यों ने विकास की नयी-नयी ऊँचाइयों को पार करने का लगातार प्रयास किया है। देश की उन्नति में योगदान दिया है। और दोनों राज्यों में महापुरुषों की अविरत श्रंखला और समाज के हर क्षेत्र में उनका जीवन हमें प्रेरणा देता रहता है। और इन महापुरुषों को याद करते हुए राज्य के स्थापना दिवस पर 2022, आज़ादी के 75 साल, हम अपने राज्य को, अपने देश को, अपने समाज को, अपने नगर को, अपने परिवार को कहाँ पहुँचाएँगे, इसका संकल्प लेना चाहिये। उस संकल्प को सिद्ध करने के लिये योजना बनानी चाहिये और सभी नागरिकों के सहयोग से आगे बढ़ना चाहिये। मेरी इन दोनों राज्यों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं।
एक ज़माना था जब climate change ये academic world का विषय रहता था, seminar का विषय रहता था। लेकिन आज, हम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में, हम अनुभव भी करते हैं, अचरज़ भी करते हैं। कुदरत ने भी, खेल के सारे नियम बदल दिये हैं। हमारे देश में मई-जून में जो गर्मी होती है, वो इस बार मार्च-अप्रैल में अनुभव करने की नौबत आ गयी। और मुझे ‘मन की बात’ पर जब मैं लोगों के सुझाव ले रहा था, तो ज़्यादातर सुझाव इन गर्मी के समय में क्या करना चाहिये, उस पर लोगों ने मुझे दिये हैं। वैसे सारी बातें प्रचलित हैं। नया नहीं होता है लेकिन फिर भी समय पर उसका पुनःस्मरण बहुत काम आता है।
श्रीमान प्रशांत कुमार मिश्र, टी.एस. कार्तिक ऐसे अनेक मित्रों ने पक्षियों की चिंता की है। उन्होंने कहा कि बालकनी में, छत पर, पानी रखना चाहिये। और मैंने देखा है कि परिवार के छोटे-छोटे बालक इस बात को बखूबी करते हैं। एक बार उनको ध्यान में आ जाए कि ये पानी क्यों भरना चाहिये तो वो दिन में 10 बार देखने जाते हैं कि जो बर्तन रखा है उसमें पानी है कि नहीं है। और देखते रहते हैं कि पक्षी आये कि नहीं आये। हमें तो लगता है कि ये खेल चल रहा है लेकिन सचमुच में, बालक मन में ये संवेदनाएं जगाने का एक अद्भुत अनुभव होता है। आप भी कभी देखिये पशु-पक्षी के साथ थोड़ा सा भी लगाव एक नये आनंद की अनुभूति कराता है।
कुछ दिन पहले मुझे गुजरात से श्रीमान जगत भाई ने अपनी एक किताब भेजी है ‘Save The Sparrows’ और जिसमें उन्होंने गौरैया की संख्या जो कम हो रही है, उसकी चिंता तो की है लेकिन स्वयं ने mission mode में उसके संरक्षण के लिये क्या प्रयोग किये हैं, क्या प्रयास किये हैं, बहुत अच्छा वर्णन उस किताब में है। वैसे हमारे देश में तो पशु-पक्षी, प्रकृति उसके साथ सह-जीवन की बात, उस रंग से हम रंगे हुए हैं लेकिन फिर भी ये आवश्यक है कि सामूहिक रूप से ऐसे प्रयासों को बल देना चाहिये। जब मैं गुजरात में मुख्यमंत्री था तो ‘दाऊदी बोहरा समाज’ के धर्मगुरु सैयदना साहब को सौ साल हुए थे। वे 103 साल तक जीवित रहे थे। और उनके सौ साल निमित्त बोहरा समाज ने Burhani foundat।on के द्वारा sparrow को बचाने के लिये एक बहुत बड़ा अभियान चलाया था। इसका शुभारम्भ करने का मुझे अवसर मिला था। क़रीब 52 हज़ार bird feeders उन्होंने दुनिया के कोने-कोने में वितरित किये थे। Guinness book of World Records में भी उसको स्थान मिला था।
कभी-कभी हम इतने व्यस्त होते हैं तो, अखबार देने वाला, दूध देने, सब्जी देने वाला, पोस्टमैन, कोई भी हमारे घर के दरवाजे से आता है, लेकिन हम भूल जाते हैं कि गर्मी के दिन हैं, ज़रा पहले उसको पानी का तो पूछें!
नौजवान दोस्तो, कुछ बातें आपके साथ भी तो मैं करना चाहता हूँ। मुझे कभी-कभी चिंता होती है कि हमारी युवा पीढ़ी में कई लोगों को comfort zone में ही ज़िंदगी गुज़ारने में आनंद आता है। माँ-बाप भी बड़े रक्षात्मक अवस्था में ही उनका लालन-पालन करते हैं। कुछ extreme भी होते हैं लेकिन ज़्यादातर comfort zone वाला नज़र आता है। अब परीक्षायें समाप्त हो चुकी हैं। Vacation का मज़ा लेने के लिये योजनायें बन चुकी होंगी। Summer vacation गर्मियां होने के बाद भी अच्छा लगता है। लेकिन मैं एक मित्र के रूप में आपका vacation कैसा जाए, कुछ बातें करना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है कुछ लोग ज़रूर प्रयोग करेंगे और मुझे बतायेंगे भी।
क्या आप vacation के इस समय का उपयोग, मैं तीन सुझाव देता हूँ, उसमें से तीनों करें तो बहुत अच्छी बात है लेकिन तीन में से एक करने का प्रयास करें। ये देखें कि new experience हो, प्रयास करें कि new skill का अवसर लें, कोशिश करें कि जिसके विषय में न कभी सुना है, न देखा है, न सोचा है, न जानते हैं फिर भी वहाँ जाने का मन करता है और चले जायें। New places, new exper।ences, new skills.
कभी-कभार किसी चीज को टी.वी. पर देखना या किताब में पढ़ना या परिचितों से सुनना और उसी चीज़ को स्वयं अनुभव करना तो दोनों में आसमान-ज़मीन का अंतर होता है। मैं आपसे आग्रह करूँगा इस vacation में जहाँ भी आपकी जिज्ञासा है उसे जानने के लिये कोशिश कीजिये, नया experiment कीजिये। Experiment positive हो, थोड़ा comfort zone से बाहर ले जाने वाला हो।
हम मध्यम-वर्गीय परिवार के हैं, सुखी परिवार के हैं। क्या दोस्तो कभी मन करता है कि reservation किये बिना रेलवे के second class में ticket लेकर के चढ़ जाएँ, कम-से-कम 24 घंटे का सफ़र करें। क्या अनुभव आता है। उन पैसेंजरों की बातें क्या हैं, वो स्टेशन पर उतर कर क्या करते हैं, शायद सालभर में जो सीख नहीं पाते हैं उस 24 घंटे की without reservation वाली, भीड़-भाड़ वाली ट्रेन में सोने को भी न मिले, खड़े-खड़े जाना पड़े। कभी तो अनुभव कीजिये। मैं ये नहीं कहता हूँ बार-बार करिये, एक-आध बार तो करिये।
शाम का समय हो अपना football ले करके, volleyball ले करके या कोई भी खेल-कूद का साधन ले करके तद्दन ग़रीब बस्ती में चले जाएँ। उन ग़रीब बालकों के साथ ख़ुद खेलिये, आप देखिये, शायद् ज़िंदगी में खेल का आनंद पहले कभी नहीं मिला होगा – ऐसा आपको मिलेगा। समाज में इस प्रकार की ज़िंदगी गुज़ारने वाले बच्चों को जब आपके साथ खेलने का अवसर मिलेगा, आपने सोचा है उनके जीवन में कितना बड़ा बदलाव आएगा। और मैं विश्वास करता हूँ एक बार जायेंगे, बार-बार जाने का मन कर जाएगा। ये अनुभव आपको बहुत कुछ सिखाएगा।
कई volunteer organisations सेवा के काम करते रहते हैं। आप तो Google गुरु से जुड़े हुए हैं उस पर ढूँढिए। किसी ऐसे organisations के साथ 15 दिन, 20 दिन के लिये जुड़ जाइये, चले जाइये, जंगलों में चले जाइये। कभी-कभी बहुत summer camp लगते हैं, personality development के लगते हैं, कई प्रकार के विकास के लिये लगते हैं उसमें शरीक़ हो सकते हैं। लेकिन साथ-साथ कभी आपको लगता है कि आपने ऐसे summer camp किये हों, personality development का course किया हो। आप बिना पैसे लिये समाज के उन लोगों के पास पहुँचे जिनको ऐसा अवसर नहीं है और जो आपने सीखा है, उनको सिखायें। कैसे किया जा सकता है, आप उनको सिखा सकते हैं।
मुझे इस बात की भी चिंता सता रही है कि technology दूरियाँ कम करने के लिये आई, technology सीमायें समाप्त करने के लिये आई लेकिन उसका दुष्परिणाम ये हुआ है कि एक ही घर में छः लोग एक ही कमरे में बैठें हों लेकिन दूरियाँ इतनी हों कि कल्पना ही नहीं कर सकते। क्यों ? हर कोई technology से कहीं और busy हो गया है। सामूहिकता भी एक संस्कार है, सामूहिकता एक शक्ति है।
दूसरा मैंने कहा कि skill, क्या आपका मन नहीं करता कि आप कुछ नया सीखें ! आज स्पर्द्धा का युग है। Examination में इतने डूबे हुए रहते हैं। उत्तम से उत्तम अंक पाने के लिये खप जाते हैं, खो जाते हैं। Vacation में भी कोई न कोई coaching class लगा रहता है, अगली exam की चिंता रहती है। कभी-कभी डर लगता है कि robot तो नहीं हो रही हमारी युवा-पीढ़ी, मशीन की तरह तो ज़िंदगी नहीं गुज़ार रही।
दोस्तो, जीवन में बहुत-कुछ बनने के सपने, अच्छी बात है, कुछ कर गुज़रने के इरादे अच्छी बात है, और करना भी चाहिये। लेकिन ये भी देखिये कि अपने भीतर जो human element है वो तो कहीं कुंठित नहीं हो रहा है, हम मानवीय गुणों से कहीं दूर तो नहीं चले जा रहे हैं ! Skill development में इस पहलू पर थोड़ा बल दिया जा सकता है क्या ! Technology से दूर, ख़ुद के साथ समय गुज़ारने का प्रयास। संगीत का कोई वाद्य सीख रहे हैं, कोई नई भाषा के 5-50 वाक्य सीख रहे हैं, तमिल हो, तेलुगु हो, असमिया हो, बांगला हो, मलयालम हो, गुजराती हो, मराठी हो, पंजाबी हो। कितनी विविधताओं से भरा हुआ देश है और नज़र करें तो हमारे अगल-बगल में ही कोई न कोई सिखाने वाला मिल सकता है। Swimming नहीं आता तो swimming सीखें, drawing करें, भले उत्तम drawing नहीं आएगा लेकिन कुछ तो कागज़ पर हाथ लगाने की कोशिश करें। आपका भीतर की जो संवेदना है वो प्रकट होने लग जाएगी।
कभी-कभी छोटे-छोटे काम जिसको हम कहते हैं – हमें, क्यों न मन करे, हम सीखें ! आपको car driving तो सीखने का मन करता है ! क्या कभी auto-rickshaw सीखने का मन करता है क्या ! आप cycle तो चला लेते हैं, लेकिन three-wheeler वाली cycle जो लोगों को ले कर के जाते हैं – कभी चलाने की कोशिश की है क्या ! आप देखें ये सारे नये प्रयोग ये skill ऐसी है आपको आनंद भी देगी और जीवन को एक दायरे में जो बाँध दिया है न, उससे आपको बाहर निकाल देगी। Out of box कुछ करिये दोस्तो। ज़िंदगी बनाने का यही तो अवसर होता है।
आप सोचते होंगे कि सारी exam, समाप्त हो जाए, Career के नये पड़ाव पर जाऊँगा तब सीखूँगा तो वो तो मौका नहीं आएगा। फिर आप दूसरी झंझट में पड़ जायेंगे और इसलिये मैं आपसे कहूँगा, अगर आपको जादू सीखने का शौक हो तो ताश के पत्तों की जादू सीखिए। अपने यार-दोस्तों को जादू दिखाते रहिये। कुछ-न-कुछ ऐसी चीज़ें जो आप नहीं जानते हैं उसको जानने का प्रयास कीजिये, उससे आपको ज़रूर लाभ होगा। आपके भीतर की मानवीय शक्तियों को चेतना मिलेगी। विकास के लिये बहुत अच्छा अवसर बनेगा।
मैं अपने अनुभव से कहता हूँ दुनिया को देखने से जितना सीखने-समझने को मिलता है जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। नये-नये स्थान, नये-नये शहर, नये-नये नगर, नये-नये गाँव, नये-नये इलाके। लेकिन जाने से पहले कहाँ जा रहें – उसका अभ्यास और जा करके एक जिज्ञासु की तरह उसे देखना, समझना, लोगों से चर्चा करना, उनसे पूछना ये अगर प्रयास किया तो उसे देखने का आनंद कुछ और होगा। आप ज़रूर कोशिश कीजिये और तय कीजिये travelling ज्यादा न करें, एक स्थान पर जाकर कर के तीन दिन, चार दिन लगाइये, फिर दूसरे स्थान पर जाइये वहाँ तीन दिन – चार दिन लगाइये, इससे आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। मैं चाहूँगा और ये भी सही है कि आप जब जा रहे हैं तो मुझे तस्वीर भी share कीजिये। क्या नया देखा ? कहाँ गए थे ? आप #IncredibleIndia का उपयोग कर के अपने इन अनुभवों को share कीजिये।
दोस्तो, इस बार भारत सरकार ने भी आपके लिये बड़ा अच्छा अवसर दिया है। नई पीढ़ी तो नकद से करीब-करीब मुक्त ही हो रही है। उसको cash की ज़रूरत नहीं है। वो Digital Currency में विश्वास करने लग गई है। आप तो करते हैं लेकिन इसी योजना से आप कमाई भी कर सकते हैं – आपने सोचा है। भारत सरकार की एक योजना है। अगर BHIM App जो कि आप download करते होंगे, आप उपयोग भी करते होंगे। लेकिन किसी और को refer करें, किसी और को जोड़ें और वो नया व्यक्ति अगर तीन transaction करे, आर्थिक कारोबार तीन बार करे, तो इस काम को करने के लिये आपको 10 रुपये की कमाई होती है। आपके खाते में सरकार की तरफ से 10 रुपये जमा हो जायेगा। अगर दिन में आपने 20 लोगों से करवा लिया तो आप शाम होते-होते 200 रुपये कमा लेंगे। व्यापारियों को भी कमाई हो सकती है, विद्यार्थियों को भी कमाई हो सकती है। और ये योजना 14 अक्टूबर तक है। Digital India बनाने में आपका योगदान होगा। New India के आप एक प्रहरी बन जाएँगे, तो vacation का vacation और कमाई की कमाई। refer & earn.
आमतौर पर हमारे देश में VIP culture के प्रति एक नफ़रत का माहौल है लेकिन ये इतना गहरा है – ये मुझे अभी-अभी अनुभव हुआ। जब सरकार ने तय कर दिया कि अब हिंदुस्तान में कितना ही बड़ा व्यक्ति क्यों न हो, वो अपनी गाड़ी पर लाल बत्ती लगा कर के नहीं घूमेगा। वो एक प्रकार से VIP culture का symbol बन गया था लेकिन अनुभव ये कहता था कि लाल बत्ती तो vehicle पर लगती थी, गाड़ी पर लगती थी, लेकिन धीरे-धीरे-धीरे वो दिमाग में घुस जाती थी और दिमागी तौर पर VIP culture पनप चुका है। अभी तो लाल बत्ती गई है इसके लिये कोई ये तो दावा नहीं कर पायेगा कि दिमाग़ में जो लाल बत्ती घुस गई है वो निकल गई होगी।
मुझे एक बड़ा interesting phone call आया। ख़ैर उस phone में उन्होंने आशंका भी व्यक्त की है लेकिन इस समय इस phone call से इतना अंदाज आता है कि सामान्य मानवी ये चीजें पसंद नहीं करता है। उसे दूरी महसूस होती है।
“नमस्कार प्रधामंत्री जी, मैं शिवा चौबे बोल रही हूँ, जबलपुर मध्य प्रदेश से। मैं Government के red beacon ban के बारे में कुछ बोलना चाहती हूँ। मैंने एक लाइन पढ़ी न्यूज़पेपर में, जिसमें लिखा था “every Indian is a VIP on a road” ये सुन के मुझे बहुत गर्व महसूस हुआ और खुशी भी हुई कि आज मेरा टाइम भी उतना ही ज़रूरी है। मुझे ट्रैफिक जाम में नहीं फंसना है और मुझे किसी के लिये रुकना भी नहीं है। तो मैं आपको दिल से बहुत धन्यवाद देना चाहती हूँ इस decision के लिये। और ये जो आपने स्वच्छ भारत अभियान चलाया है इसमें हमारा देश ही नहीं साफ़ हो रहा है, हमारी सड़कों से V।P की दादागिरी भी साफ हो रही है – तो उसके लिये धन्यवाद।”
सरकारी निर्णय से लाल बत्ती का जाना, वो तो एक व्यवस्था का हिस्सा है लेकिन मन से भी हमें प्रयत्नपूर्वक इसे निकालना है। हम सब मिल कर के जागरूक प्रयास करेंगे तो निकल सकता है। New India का हमारा concept यही है कि देश में VIP की जगह पर EPI का महत्व बढ़े। और जब मैं V।P के स्थान पर EPI कह रहा हूँ तो मेरा भाव स्पष्ट है – Every Person is important – हर व्यक्ति का महत्व है, हर व्यक्ति का माहात्म्य है। सवा-सौ करोड़ देशवासियों का महत्व हम स्वीकार करें, सवा-सौ करोड़ देशवासियों का माहात्म्य स्वीकार करें तो महान सपनों को पूरा करने के लिये कितनी बड़ी शक्ति एकजुट हो जाएगी। हम सबने मिलकर के करना है।
मेरे प्यारे देशवासियों, मैं हमेशा कहता हूँ कि हम इतिहास को, हमारी संस्कृतियों को, हमारी परम्पराओं को, बार-बार याद करते रहें। उससे हमें ऊर्जा मिलती है, प्रेरणा मिलती है। इस वर्ष हम सवा-सौ करोड़ देशवासी संत रामानुजाचार्य जी की 1000वीं जयंती मना रहे हैं। किसी-न-किसी कारणवश हम इतने बंध गये, इतने छोटे हो गये कि ज्यादा-ज्यादा शताब्दियों तक का ही विचार करते रहे। दुनिया के अन्य देशों के लिये तो शताब्दी का बड़ा महत्व होगा। लेकिन भारत इतना पुरातन राष्ट्र है कि उसके नसीब में हज़ार साल और हज़ार साल से भी पुरानी यादों को मनाने का अवसर हमें मिला है। एक हज़ार साल पहले का समाज कैसा होगा? सोच कैसी होगी? थोड़ी कल्पना तो कीजिये। आज भी सामाजिक रुढियों को तोड़ कर के निकलना हो तो कितनी दिक्कत होती है। एक हज़ार साल पहले कैसा होता होगा?
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि रामानुजाचार्य जी ने समाज में जो बुराइयाँ थी, ऊँच-नीच का भाव था, छूत-अछूत का भाव था, जातिवाद का भाव था, इसके खिलाफ़ बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी थी। स्वयं ने अपने आचरण द्वारा समाज जिनको अछूत मानता था उनको गले लगाया था। हज़ार साल पहले उनके मंदिर प्रवेश के लिये उन्होंने आंदोलन किये थे और सफलतापूर्वक मंदिर प्रवेश करवाये थे। हम कितने भाग्यवान हैं कि हर युग में हमारे समाज की बुराइयों को खत्म करने के लिये हमारे समाज में से ही महापुरुष पैदा हुए हैं। संत रामानुजाचार्य जी की 1000वीं जयंती मना रहे हैं तब, सामाजिक एकता के लिये, संगठन में शक्ति है – इस भाव को जगाने के लिये उनसे हम प्रेरणा लें।
भारत सरकार भी कल 1 मई को ‘संत रामानुजाचार्य’ जी की स्मृति में एक stamp release करने जा रही है। मैं संत रामानुजाचार्य जी को आदर पूर्वक नमन करता हूँ, श्रृद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियों, कल 1 मई का एक और भी महत्व है। दुनिया के कई भागों में उसे ‘श्रमिक दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। और जब ‘श्रमिक दिवस’ की बात आती है, Labour की चर्चा होती है, Labourers की चर्चा होती है तो मुझे बाबा साहब अम्बेडकर की याद आना बहुत स्वाभाविक है। और बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि आज श्रमिकों को जो सहुलियतें मिली हैं, जो आदर मिला है, उसके लिये हम बाबा साहब के आभारी हैं। श्रमिकों के कल्याण के लिये बाबा साहब का योगदान अविस्मरणीय है।
आज जब मैं बाबा साहब की बात करता हूँ, संत रामानुजाचार्य जी की बात करता हूँ तो 12वीं सदी के कर्नाटक के महान संत और सामाजिक सुधारक ‘जगत गुरु बसवेश्वर’ जी की भी याद आती है। कल ही मुझे एक समारोह में जाने का अवसर मिला। उनके वचनामृत के संग्रह को लोकार्पण का वो अवसर था। 12वीं शताब्दी में कन्नड़ भाषा में उन्होंने श्रम, श्रमिक उस पर गहन विचार रखे हैं। कन्नड़ भाषा में उन्होंने कहा था – “काय कवे कैलास”, उसका अर्थ होता है – आप अपने परिश्रम से ही भगवान शिव के घर कैलाश की प्राप्ति कर सकते हैं यानि कि कर्म करने से ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो श्रम ही शिव है।
मैं बार-बार ‘श्रमेव-जयते’ की बात करता हूँ। ‘Dignity of labour’ की बात करता हूँ। मुझे बराबर याद है भारतीय मज़दूर संघ के जनक और चिन्तक जिन्होंने श्रमिकों के लिए बहुत चिंतन किया, ऐसे श्रीमान दत्तोपन्त ठेंगड़ी कहा करते थे – एक तरफ़ माओवाद से प्रेरित विचार था कि “दुनिया के मज़दूर एक हो जाओ” और दत्तोपन्त ठेंगड़ी कहते थे “मज़दूरों आओ, दुनिया को एक करें”। एक तरफ़ कहा जाता था- ‘Workers of the world unite’। भारतीय चिंतन से निकली हुई विचारधारा को ले करके दत्तोपन्त ठेंगड़ी कहा करते थे – ‘Workers unite the world’। आज जब श्रमिकों की बात करता हूँ तो दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी को याद करना बहुत स्वाभाविक है।
मेरे प्यारे देशवासियों, कुछ दिन के बाद हम बुद्ध पूर्णिमा मनायेंगे। विश्वभर में भगवान बुद्ध से जुड़े हुए लोग उत्सव मनाते हैं। विश्व आज जिन समस्याओं से गुज़र रहा है हिंसा, युद्ध, विनाशलीला, शस्त्रों की स्पर्द्धा, जब ये वातावरण देखते हैं तो तब, बुद्ध के विचार बहुत ही relevant लगते हैं। और भारत में तो अशोक का जीवन युद्ध से बुद्ध की यात्रा का उत्तम प्रतीक है। मेरा सौभाग्य है कि बुद्ध पूर्णिमा के इस महान पर्व पर United Nations के द्वारा vesak day मनाया जाता है। इस वर्ष ये श्रीलंका में हो रहा है। इस पवित्र पर्व पर मुझे श्रीलंका में भगवान बुद्ध को श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का एक अवसर मिलेगा। उनकी यादों को ताज़ा करने का अवसर मिलेगा।
मेरे प्यारे देशवासियों, भारत में हमेशा ‘सबका साथ-सबका विकास’ इसी मंत्र को ले करके आगे बढ़ने का प्रयास किया है। और जब हम सबका साथ-सबका विकास कहते हैं, तो वो सिर्फ़ भारत के अन्दर ही नहीं – वैश्विक परिवेश में भी है। और ख़ास करके हमारे अड़ोस-पड़ोस देशों के लिए भी है। हमारे अड़ोस-पड़ोस के देशों का साथ भी हो, हमारे अड़ोस-पड़ोस के देशों का विकास भी हो। अनेक प्रकल्प चलते हैं।
5 मई को भारत दक्षिण-एशिया satellite launch करेगा। इस satellite की क्षमता तथा इससे जुड़ी सुविधायें दक्षिण-एशिया के आर्थिक तथा developmental प्राथमिकताओं को पूरा करने में काफ़ी मदद करेगीं। चाहे natural resources mapping करने की बात हो, tele-medicine की बात हो, education का क्षेत्र हो या IT connectivity हो, people to people संपर्क का प्रयास हो। South Asia का यह उपग्रह हमारे पूरे क्षेत्र को आगे बढ़ने में पूरा सहायक होगा। पूरे दक्षिण-एशिया के साथ सहयोग बढ़ाने के लिये भारत का एक महत्वपूर्ण कदम है – अनमोल नज़राना है। दक्षिण-एशिया के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का ये एक उपयुक्त उदाहरण है। दक्षिण एशियाई देशों जो कि South As।a Satellite से जुड़े हैं, मैं उन सबका इस महत्वपूर्ण प्रयास के लिये स्वागत करता हूँ, शुभकामनाएं देता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियों, गर्मी बहुत है, अपनों को भी संभालिये, अपने को भी संभालिये। बहुत-बहुत शुभकामनाएं! धन्यवाद!