मन की बात’ की 24वीं कड़ी में प्रधानमंत्री का संबोधन
25 Sep, 2016
मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। बीते दिनों जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में, एक आतंकी हमले में, हमारे देश के 18 वीर सपूतों को हमने खो दिया। मैं इन सभी बहादुर सैनिकों को नमन करता हूँ और उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। इस कायराना घटना पूरे देश को झकझोरने के लिए काफ़ी थी। देश में शोक भी है, आक्रोश भी है और ये क्षति सिर्फ़ उन परिवारों की नहीं है, जिन्होंने अपना बेटा खोया, भाई खोया, पति खोया। ये क्षति पूरे राष्ट्र की है। और इसलिए मैं देशवासियों को आज इतना ही कहूँगा और जो मैंने उसी दिन कहा था, मैं आज उसको फिर से दोहराना चाहता हूँ कि दोषी सज़ा पा करके ही रहेंगे।
मेरे प्यारे देशवासियो, हमें हमारी सेना पर भरोसा है। वे अपने पराक्रम से ऐसी हर साज़िश को नाकाम करेंगे और देश के सवा-सौ करोड़ देशवासी सुख-चैन की ज़िंदगी जी सकें, इसके लिए वो पराक्रम की पराकाष्ठा करने वाले लोग हैं। हमारी सेना पर हमें नाज़ है। हम नागरिकों के लिए, राजनेताओं के लिए, बोलने के कई अवसर होते हैं। हम बोलते भी हैं। लेकिन सेना बोलती नहीं है। सेना पराक्रम करती है।
मैं आज कश्मीर के नागरिकों से भी विशेष रूप से बात करना चाहता हूँ। कश्मीर के नागरिक देश-विरोधी ताक़तों को भली-भाँति समझने लगे हैं। और जैसे-जैसे सच्चाई समझने लगे हैं, वे ऐसे तत्वों से अपने-आप को अलग करके शांति के मार्ग पर चल पड़े हैं। हर माँ-बाप की इच्छा है कि जल्द से जल्द स्कूल-कॉलेज पूरी तरह काम करें। किसानों को भी लग रहा है कि उनकी जो फ़सल, फल वगैरह तैयार हुए हैं, वो हिन्दुस्तान भर के market में पहुँचें। आर्थिक कारोबार भी ठीक ढंग से चले। और पिछले कुछ दिनों से कारोबार सुचारु रूप से चलना शुरू भी हुआ है। हम सब जानते हैं – शान्ति, एकता और सद्भावना ही हमारी समस्याओं का समाधान का रास्ता भी है, हमारी प्रगति का रास्ता भी है, हमारे विकास का भी रास्ता है। हमारी भावी पीढ़ियों के लिये हमने विकास की नई ऊंचाइयों को पार करना है। मुझे विश्वास है कि हर समस्या का समाधान हम मिल-बैठ करके खोजेंगे, रास्ते निकालेंगे और साथ-साथ कश्मीर की भावी पीढ़ी के लिये उत्तम मार्ग भी प्रशस्त करेंगे। कश्मीर के नागरिकों की सुरक्षा, ये शासन की जिम्मेवारी होती है। क़ानून और व्यवस्था बनाने के लिये शासन को कुछ क़दम उठाने पड़ते हैं। मैं सुरक्षा बलों को भी कहूँगा कि हमारे पास जो सामर्थ्य है, शक्ति है, क़ानून हैं, नियम हैं; उनका उपयोग क़ानून और व्यवस्था के लिये है, कश्मीर के सामान्य नागरिकों को सुख-चैन की ज़िन्दगी देने के लिये है और उसका हम भली-भाँति पालन करेंगे। कभी-कभार हम जो सोचते हैं, उससे अलग सोचने वाले भी लोग नये-नये विचार रखते हैं। social media में इन दिनों मुझे बहुत-कुछ जानने का अवसर मिलता है; हिन्दुस्तान के हर कोने से, हर प्रकार के लोगों के भावों को, जानने-समझने का अवसर मिलता है और ये लोकतंत्र की ताक़त को बढ़ावा देता है। पिछले दिनों 11वीं कक्षा के हर्षवर्द्धन नाम के एक नौजवान ने मेरे सामने एक अलग प्रकार का विचार रखा। उसने लिखा है – “उरी आतंकवादी हमले के बाद मैं बहुत विचलित था। कुछ कर गुज़रने की तीव्र लालसा थी। लेकिन करने का कुछ रास्ता नहीं सूझ रहा था। और मुझ जैसा एक छोटा-सा विद्यार्थी क्या कर सकता है। तो मेरे मन में आया कि मैं भी देश-हित के लिए काम कैसे आऊँ। और मैंने संकल्प किया कि मैं रोज़ 3 घंटे अधिक पढ़ाई करूँगा। देश के काम आ सकूँ, ऐसा योग्य नागरिक बनूँगा। ”
भाई हर्षवर्द्धन, आक्रोश के इस माहौल में इतनी छोटी उम्र में, आप स्वस्थता से सोच सकते हो, यही मेरे लिए ख़ुशी की बात है। लेकिन हर्षवर्द्धन, मैं ये भी कहूँगा कि देश के नागरिकों के मन में जो आक्रोश है, उसका एक बहुत-बड़ा मूल्य है। ये राष्ट्र की चेतना का प्रतीक है। ये आक्रोश भी कुछ कर गुज़रने के इरादों वाला है। हाँ, आपने एक constructive approach से उसको प्रस्तुत किया। लेकिन आपको पता होगा, जब 1965 की लड़ाई हुई, लाल बहादुर शास्त्री जी हमारा नेतृत्व कर रहे थे और पूरे देश में ऐसा ही एक जज़्बा था, आक्रोश था, देशभक्ति का ज्वार था, हर कोई, कुछ-न-कुछ हो, ऐसा चाहता था, कुछ-न-कुछ करने का इरादा रखता था। तब लाल बहादुर शास्त्री जी ने बहुत ही उत्तम तरीक़े से देश के इस भाव-विश्व को स्पर्श करने का बड़ा ही प्रयास किया था। और उन्होंने ‘जय जवान – जय किसान’ मंत्र देकर के देश के सामान्य मानव को देश के लिए कार्य कैसे करना है, उसकी प्रेरणा दी थी। बम-बन्दूक की आवाज़ के बीच देशभक्ति को प्रकट करने का और भी एक रास्ता हर नागरिक के लिये होता है, ये लालबहादुर शास्त्री जी ने प्रस्तुत किया था। महात्मा गाँधी भी, जब आज़ादी का आन्दोलन चलाते थे, आन्दोलन जब तीव्रता पर होता था और आन्दोलन में एक पड़ाव की ज़रूरत होती थी, तो वे आन्दोलन की उस तीव्रता को समाज के अन्दर रचनात्मक कामों की ओर प्रेरित करने के लिए बड़े सफल प्रयोग करते थे। हम सब – सेना अपनी ज़िम्मेवारी निभाए, शासन बैठे हुए लोग अपना कर्तव्य निभाएँ और हम देशवासी, हर नागरिक, इस देशभक्ति के जज़्बे के साथ, हम भी कोई-न-कोई रचनात्मक योगदान दें, तो देश अवश्य नई ऊंचाइयों को पार करेगा।
मेरे प्यारे देशवासियो, श्रीमान टी. एस. कार्तिक ने मुझे NarendraModiApp पर लिखा कि Paralympics में जो athletes गए थे, उन्होंने इतिहास रचा और उनका प्रदर्शन human spirit की जीत है। श्रीमान वरुण विश्वनाथन ने भी NarendraModiApp पर लिखा कि हमारे athletes ने बहुत ही अच्छा काम किया। आपको ‘मन की बात’ में उसका ज़िक्र करना चाहिये। आप दो नहीं, देश के हर व्यक्ति को Paralympics में हमारे खिलाडियों के प्रति एक emotional attachment हुआ है। शायद खेल से भी बढ़कर इस Paralympics ने और हमारे खिलाड़ियों के प्रदर्शन ने, मानवता के दृष्टिकोण को, दिव्यांग के प्रति देखने के दृष्टिकोण को, पूरी तरह बदल दिया है। और मैं, हमारी विजेता बहन दीपा मलिक की इस बात को कभी नहीं भूल पाऊंगा। जब उसने medal प्राप्त किया, तो उसने ये कहा – “इस medal से मैंने विकलांगता को ही पराजित कर दिया है। ” इस वाक्य में बहुत बड़ी ताक़त है। इस बार Paralympics में हमारे देश से 3 महिलाओं समेत 19 athletes ने हिस्सा लिया। बाकी खेलों की तुलना में जब दिव्यांग खेलते हैं, तो शारीरिक क्षमता, खेल का कौशल्य, इस सबसे भी बड़ी बात होती है – इच्छा शक्ति, संकल्प शक्ति।
आपको ये जानकर के सुखद आश्चर्य होगा कि हमारे खिलाड़ियों ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 4 पदक हासिल किए हैं – 2 स्वर्ण, 1 रजत, 1 काँस्य पदक शामिल हैं। Gold Medal प्राप्त करने वाले भाई देवेन्द्र झाझरिया – ‘भाला फेंक’ में वो दुबारा Gold Medal लाए और 12 साल के बाद दुबारा ले आए। 12 साल में उम्र बढ़ जाती है। एक बार Gold Medal मिलने के बाद कुछ जज़्बा भी कम हो जाता है, लेकिन देवेन्द्र ने दिखा दिया कि शरीर की अवस्था, उम्र का बढ़ना, उनके संकल्प को कभी भी ढीला नहीं कर पाया और 12 साल के बाद दोबारा Gold Medal ले आए। और वे जन्म से दिव्यांग नहीं थे। बिजली का current लगने के कारण उनको अपना एक हाथ गँवाना पड़ा था। आप सोचिए, जो इंसान 23 साल की उम्र में पहला Gold Medal प्राप्त करे और 35 साल की उम्र में दूसरा Gold Medal प्राप्त करे, उन्होंने जीवन में कितनी बड़ी साधना की होगी। मरियप्पन थन्गावेलु – ‘High Jump’ में स्वर्ण पदक जीता। और थन्गावेलु ने सिर्फ़ 5 साल की उम्र में अपना दाहिना पैर खो दिया था। ग़रीबी भी उनके संकल्प के आड़े नहीं आई। न वो बड़े शहर के रहने वाले हैं, न मध्यमवर्गीय अमीर परिवार से हैं। 21 साल की उम्र में कठिनाइयों भरी ज़िंदगी से गुज़रने के बावजूद भी, शारीरिक कठिनाइयों के बावजूद भी संकल्प के सामर्थ्य से देश को medal दिलवा दिया। Athlete दीपा मलिक के नाम पर तो कई प्रकार के विजयपताकायें फहराने का उनके नाम के साथ जुड़ चुका है।
वरुण सी. भाटी ने ‘ऊँची कूद’ में ‘काँस्य पदक’ हासिल किया। Paralympics के medal, उसका माहात्म्य तो है ही है, हमारे देश में, हमारे समाज में, हमारे अड़ोस-पड़ोस में, हमारे जो दिव्यांग भाई-बहन हैं, उनकी तरफ़ देखने के लिये इन मेडलों ने बहुत बड़ा काम किया है। हमारी संवेदनाओं को तो जगाया है, लेकिन इन दिव्यांगजनों के प्रति देखने के दृष्टिकोण को भी बदला है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इस बार के Paralympics में ये दिव्यांगजनों ने कैसा पराक्रम किया है। कुछ ही दिनों पहले, उसी स्थान पर Olympics स्पर्द्धा हुई। कोई सोच सकता है कि General Olympics के record को दिव्यांग लोगों ने भी break कर दिया, तोड़ दिया। इस बार हुआ है। 1500 मीटर की जो दौड़ होती है, उसमें जो Olympics स्पर्द्धा थी, उसमें Gold Medal प्राप्त करने वाले ने जो record बनाया था, उससे दिव्यांग की स्पर्द्धा में अल्जीरिया के Abdellatif Baka ने 1.7 second कम समय में, 1500 मीटर दौड़ में, एक नया record बना दिया। इतना ही नहीं, मुझे ताज्जुब तो तब हुआ कि दिव्यांगजनों में जिसका चौथा नंबर आया धावक के नाते, कोई medal नहीं मिला, वो general धावकों में Gold Medal पाने वाले से भी कम समय में दौड़ा था। मैं फिर एक बार, हमारे इन सभी खिलाड़ियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ और आने वाले दिनों में भारत Paralympics के लिये भी, उसके विकास के लिये भी, एक सुचारु योजना बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले सप्ताह मुझे गुजरात के नवसारी में कई अद्भुत अनुभव हुए। बड़ा emotional पल था मेरे लिये। दिव्यांगजनों के लिये एक Mega Camp भारत सरकार का लगाया गया था और कई सारे world record हो गए उस दिन। और वहाँ मुझे एक छोटी-सी बिटिया, जो दुनिया देख नहीं सकती है – गौरी शार्दूल, और वो भी डांग ज़िले के दूर-सुदूर जंगलों से आई हुई और बहुत छोटी बच्ची थी। उसने मुझे काव्यमय पठन के द्वारा पूरी रामायण उसको मुख-पाठ है। उसने मुझे कुछ अंश सुनाए भी, और वो मैंने वहाँ, लोगों के सामने भी प्रस्तुत किया, तो लोग हैरान थे। उस दिन मुझे एक किताब का लोकार्पण करने का अवसर मिला। उन्होंने कुछ दिव्यांगजनों के जीवन की सफल गाथाओं को संग्रहित किया था। बड़ी प्रेरक घटनायें थीं। भारत सरकार ने नवसारी की धरती पर विश्व रिकॉर्ड किया, जो महत्वपूर्ण मैं मानता हूँ। आठ घंटे के भीतर-भीतर छह-सौ दिव्यांगजन, जो सुन नहीं पाते थे, उनको सुनने के लिए मशीनें feed करने का सफल प्रयोग किया। Guinness Book of World Record में उसको स्थान मिला। एक ही दिन में दिव्यांगों के द्वारा तीन-तीन world record होना हम देशवासियों के लिए गौरव की बात है।
मेरे प्यारे देशवासियो, दो साल पहले, 2 अक्टूबर को पूज्य बापू की जन्म जयंती पर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ को हमने प्रारंभ किया था। और उस दिन भी मैंने कहा था कि स्वच्छ्ता – ये स्वभाव बनना चाहिए, हर नागरिक का कर्तव्य बनना चाहिए, गंदगी के प्रति नफ़रत का माहौल बनना चाहिए। अब 2 अक्टूबर को जब दो वर्ष हो रहे हैं, तब मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि देश के सवा-सौ करोड़ देशवासियों के दिल में स्वच्छ्ता के प्रति जागरूकता बढ़ी है। और मैंने कहा था – ‘एक कदम स्वच्छ्ता की ओर’ और आज हम सब कह सकते हैं कि हर किसी ने एक कदम आगे बढ़ने का प्रयास किया ही है। मतलब कि देश सवा-सौ करोड़ कदम, स्वच्छ्ता की ओर आगे बढ़ा है। ये भी पक्का हो चुका है, दिशा सही है, फल कितने अच्छे होते हैं, थोड़े से प्रयास से क्या होता है, वो भी नज़र आया है और इसलिए हर कोई चाहे सामान्य नागरिक हो, चाहे शासक हो, चाहे सरकार के कार्यालय हों या सड़क हो, बस-अड्डे हों या रेल हो, स्कूल या कॉलेज हो, धार्मिक स्थान हो, अस्पताल हो, बच्चों से लेकर बूढों तक, गाँव ग़रीब, किसान महिलाएँ, सब कोई, स्वच्छ्ता के अन्दर कुछ-न-कुछ योगदान दे रहे हैं। media के मित्रों ने भी एक सकारात्मक भूमिका निभाई है। मैं भी चाहूँगा कि हमें अभी भी और बहुत आगे बढ़ना है। लेकिन शुरुआत अच्छी हुई है, प्रयास भरपूर हुए हैं, और हम कामयाब होंगे, ये विश्वास भी पैदा हुआ है। ये भी तो ज़रूरी होता है और तभी तो ग्रामीण भारत की बात करें, तो अब तक दो करोड़ अड़तालीस लाख, यानि करीब-करीब ढाई-करोड़ शौचालय का निर्माण हुआ है और आने वाले एक साल में डेढ़ करोड़ और शौचालय बनाने का इरादा है। आरोग्य के लिये, नागरिकों के सम्मान के लिये, ख़ास करके माताओं-बहनों के सम्मान के लिये, खुले में शौच जाने की आदत बंद होनी ही चाहिए और इसलिये Open Defecation Free (ODF) ‘खुले में शौच जाने की आदतों से मुक्ति’, उसका एक अभियान चल पड़ा है। राज्यों-राज्यों के बीच, ज़िले-ज़िले के बीच, गाँव-गाँव के बीच, एक स्वस्थ स्पर्द्धा चल पड़ी है। आंध्र प्रदेश, गुजरात और केरल खुले में शौच जाने की आदत से मुक्ति की दिशा में बहुत ही निकट भविष्य में पूर्ण सफलता प्राप्त करेंगे। मैं अभी गुजरात गया था, तो मुझे अफ़सरों ने बताया कि पोरबंदर, जो कि महात्मा गाँधी का जन्म स्थान है, इस 2 अक्टूबर को पोरबंदर पूरी तरह ODF का लक्ष्य सिद्ध कर लेगा। जिन्होंने इस काम को किया है, उनको बधाई, जो करने का प्रयास कर रहे हैं, उनको शुभकामनायें और देशवासियों से मेरा आग्रह है कि माँ-बहनों के सम्मान के लिये, छोटे-छोटे बच्चों के स्वास्थ्य के लिये, इस समस्या से हमें देश को मुक्त करना है। आओ, हम संकल्प ले करके आगे बढ़ें। खासकर के मैं नौजवान मित्र, जो कि आजकल technology का भरपूर उपयोग करते हैं, उनके लिये एक योजना प्रस्तुत करना चाहता हूँ। स्वच्छता मिशन का आपके शहर में क्या हाल है? ये जानने का हक़ हर किसी को है और इसके लिये भारत सरकार ने एक टेलीफ़ोन नंबर दिया है – 1969। हम जानते हैं, 1869 में महात्मा गाँधी का जन्म हुआ था। 1969 में हमने महात्मा गाँधी की शताब्दी मनाई थी। और 2019 में महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती मनाने वाले हैं। ये 1969 नंबर – उस पर आप फ़ोन करके न सिर्फ़ अपने शहर में शौचालयों के निर्माण की स्थिति जान पाएँगे, बल्कि शौचालय बनवाने के लिए आवेदन भी कर पाएँगे। आप ज़रूर उसका लाभ उठाएँ। इतना ही नहीं, सफाई से जुड़ी शिकायतों और उन शिकायतों के समाधान की स्थिति जानने के लिये एक स्वच्छता App की शुरुआत की है। आप इसका भरपूर फायदा उठाएँ, खासकर के young generation फायदा उठाए। भारत सरकार ने corporate world को भी appeal की है कि वे आगे आएँ। स्वच्छता के लिये काम करना जो चाहते हैं, ऐसे young professionals को sponsor करें। ज़िलों के अन्दर ‘स्वच्छ भारत Fellows’ के रूप में उनको भेजा जा सकता है।
ये स्वच्छता अभियान सिर्फ संस्कारों तक सीमित रहने से भी बात बनती नहीं है। स्वच्छता स्वभाव बन जाए, इतने से ही काफ़ी नहीं है। आज के युग में स्वच्छता के साथ स्वास्थ्य जैसे जुड़ता है, वैसे स्वच्छता के साथ revenue model भी अनिवार्य है। ‘Waste to Wealth’ ये भी उसका एक अंग होना ज़रूरी है और इसलिये स्वच्छता मिशन के साथ-साथ ‘Waste to Compost’ की तरफ़ हमें आगे बढ़ना है। solid waste की processing हो। Compost में बदलने के लिये काम हो, और इसके लिये सरकार की तरफ़ से policy intervention की भी शुरुआत की गई है। Fertilizer कंपनियों को कहा है कि वे waste में से जो Compost तैयार होता है, उसको ख़रीदें। जो किसान organic farming में जाना चाहते हैं, उनको ये मुहैया कराएँ। जो लोग अपनी ज़मीन का स्वास्थ्य सुधारना चाहते हैं, धरती की तबीयत की फ़िक्र करते हैं, जो chemical fertilizer के कारण काफ़ी नुकसान हो चुका है, उनको अगर कुछ मात्रा में इस प्रकार की खाद की ज़रूरत है, तो वो मुहैया कराएँ। और श्रीमान अमिताभ बच्चन जी Brand Ambassador के रूप में इस काम में काफ़ी योगदान दे रहे हैं। मैं नौजवानों को ‘Waste to Wealth’ इस movement में नये-नये start-up के लिए भी निमंत्रित करता हूँ। वैसे साधन विकसित करें, वैसी technology विकसित करें, सस्ते में उसके mass production का काम करें। ये करने जैसा काम है। बहुत बड़ा रोज़गार का भी अवसर है। बहुत बड़ी आर्थिक गतिविधि का भी अवसर है। और waste में से wealth creation – ये सफल होता है। इसी वर्ष 25 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक एक विशेष कार्यक्रम ‘INDOSAN’, India Sanitation Conference आयोजित हो रही है। देश भर से मंत्री, मुख्यमंत्री, महानगरों के Mayor, Commissioner – ये सब मिल करके सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘स्वच्छता’ – इसी पर गहन चिंतन-मनन करने वाले हैं। Technology में क्या हो सकता है? Financial model क्या हो सकता है? जन-भागीदारी कैसे हो सकती है? रोज़गार के अवसर इसमें कैसे बढ़ाये जा सकते हैं? सब विषयों पर चर्चा होने वाली है। और मैं तो देख रहा हूँ कि लगातार स्वच्छता के लिये नई-नई ख़बरें आती रहती हैं। अभी एक दिन मैंने अख़बार में पढ़ा कि Gujarat Technology University के विद्यार्थियों ने 107 गाँवों में जाकर शौचालय निर्माण के लिये जागरण अभियान चलाया। स्वयं ने श्रम किया और क़रीब-क़रीब 9 हज़ार शौचालय बनाने में उन्होंने अपना योगदान दिया। पिछले दिनों आपने देखा होगा, Wing Commander परमवीर सिंह की अगुवाई में एक टीम ने तो गंगा में देवप्रयाग से ले करके गंगा सागर तक, 2800 किलोमीटर की यात्रा तैर करके की और स्वच्छता का संदेश दिया। भारत सरकार ने भी अपने-अपने विभागों ने, एक साल-भर का calendar बनाया है। हर department 15 दिन विशेष रूप से स्वच्छता पर focus करता है। आने वाले अक्टूबर महीने में 1 से 15 अक्टूबर तक Drinking Water and Sanitation Department, Panchayati Raj Department, Rural Development Department – ये तीनों मिल करके अपने-अपने क्षेत्र में स्वच्छता का road-map बना करके काम करने वाले हैं। और अक्टूबर महीने के last two week,16 अक्टूबर से 31 अक्टूबर, तीन और department Agriculture and Farmer Welfare – कृषि और किसान कल्याण विभाग, Food Processing Industries, Consumer Affairs – ये department 15 दिन अपने साथ संबंधित जो क्षेत्र हैं, वहाँ पर सफ़ाई अभियान चलाने वाले हैं। मेरा नागरिकों से भी अनुरोध है कि ये विभागों के द्वारा जो काम चलता है, उसमें आपका कहीं संबंध आता है, तो आप भी जुड़ जाइए। आपने देखा होगा, इन दिनों स्वच्छता का survey अभियान भी चलता है। पहले एक बार 73 शहरों के survey करके स्वच्छता की क्या स्थिति है, उसको देश की जनता के सामने प्रस्तुत किया था। अब 1 लाख से ऊपर जनसँख्या वाले जो 500 के क़रीब शहर हैं, उनकी बारी है और इसके कारण हर शहर के अन्दर एक विश्वास पैदा होता है कि चलो भाई, हम पीछे रह गए, अब अगली बार हम कुछ अच्छा करेंगे। एक स्वच्छता की स्पर्द्धा का माहौल बना है। मैं आशा करता हूँ कि हम सभी नागरिक इस अभियान में जितना योगदान दे सकते हैं, देना चाहिए। आने वाली 2 अक्टूबर, महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री जी की जन्म जयंती है। ‘स्वच्छ भारत मिशन’ को 2 वर्ष हो रहे हैं। मैं गाँधी जयंती से दीवाली तक, खादी का कुछ-न-कुछ खरीदने के लिये तो आग्रह करता ही रहता हूँ। इस बार भी मेरा आग्रह है कि हर परिवार में कोई-न-कोई खादी की चीज़ होनी चाहिये, ताकि ग़रीब के घर में दीवाली का दिया जल सके। इस 2 अक्टूबर को, जबकि रविवार है, एक नागरिक के नाते हम स्वयं स्वच्छता में कहीं-न-कहीं जुड़ सकते हैं क्या? 2 घंटे, 4 घंटे physically आप सफ़ाई के काम में अपने-आप को जोड़िये और मैं आपसे कहता हूँ कि आप जो सफ़ाई अभियान में जुड़े, उसकी एक photo मुझे ‘NarendraModiApp’ पर आप share कीजिए। video हो, तो video share कीजिए। देखिए, पूरे देश में हम लोगों के प्रयास से फिर एक बार इस आंदोलन को नई ताक़त मिल जाएगी, नई गति मिल जाएगी। महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री को पुण्य स्मरण करते हुए हम देश के लिए कुछ-न-कुछ करने का संकल्प करें।
मेरे प्यारे देशवासियो, जीवन में देने का अपने-आप में एक आनंद होता है। कोई उसे recognize करे या ना करे। देने की ख़ुशी अद्भुत होती है। और मैंने तो देखा पिछले दिनों, जब gas subsidy छोड़ने के लिए मैंने कहा और देशवासियों ने जो उसको respond किया, वो अपने-आप में ही एक बहुत बड़ी प्रेरक घटना है भारत के राष्ट्रीय जीवन की। इन दिनों हमारे देश में कई नौजवान, छोटे-मोटे संगठन, corporate जगत के लोग, स्कूलों के लोग, कुछ NGO, ये सब मिल करके 2 अक्टूबर से 8 अक्टूबर कई शहरों में ‘Joy of Giving Week’ मनाने वाले हैं। ज़रुरतमंद लोगों को खाने का सामान, कपड़े, ये सब एकत्र कर-कर के वो पहुँचाने का उनका अभियान है। मैं जब गुजरात में था, तो हमारे सारे कार्यकर्ता गलियों में निकलते थे और परिवारों के पास जो पुराने खिलौने होते थे, उसका दान में मांग करते थे और जो खिलौने आते थे, वो ग़रीब बस्ती की जो आंगनबाड़ी होती थी, उसमें भेंट दे देते थे। उन ग़रीब बालकों के लिए वो खिलौने, इनका अद्भुत आनंद देख कर के ऐसा लगता था कि वाह! मैं समझता हूँ कि ये जो ‘Joy of Giving Week’ है, जिन शहरों में होने वाला है, ये नौजवानों के उत्साह को हमने प्रोत्साहन देना चाहिये, उनको मदद करनी चाहिये। एक प्रकार का ये दान उत्सव है। जो नौजवान इस काम में लगे हैं, उनको मैं हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, आज 25 सितम्बर है, पंडित दीनदयाल उपध्याय जी की जन्म जयंती का आज अवसर है और आज से उनके जन्म के शताब्दी वर्ष का प्रारंभ हो रहा है। मेरे जैसे लाखों कार्यकर्ता जिस राजनैतिक विचारधारा को लेकर के काम कर रहे हैं, उस राजनैतिक विचारधारा को व्याख्यायित करने का काम, भारत की जड़ों से जुड़ी हुई राजनीति के पक्षकार, भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुरस्कृत करने के प्रयास वाली विचारधारा के साथ, जिन्होंने अपना एक राजनैतिक दर्शन दिया, एकात्म-मानव दर्शन दिया, वैसे पंडित दीनदयाल जी की शताब्दी का वर्ष आज प्रारंभ हो रहा है। ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ अन्त्योदय का सिद्धांत – ये उनकी देन रही है। महात्मा गाँधी भी आखिरी छोर के व्यक्ति के कल्याण की बात करते थे। विकास का फल ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति को कैसे मिले? ‘हर हाथ को काम हर खेत को पानी’, दो ही शब्दों में पूरा आर्थिक agenda उन्होंनें प्रस्तुत किया था। देश उनके जन्म-शताब्दी वर्ष को ‘गरीब कल्याण वर्ष’ के रूप में मनाए। समाज का, सरकारों का, हर किसी का ध्यान, विकास के लाभ ग़रीब को कैसे मिलें, उस पर केन्द्रित हो और तभी जाकर के देश को हम ग़रीबी से मुक्ति दिला सकते हैं। मैं पिछले दिनों जहाँ प्रधानमंत्री का निवास स्थान है, जो अब तक अंग्रेज़ों के जमाने से ‘रेस-कोर्स रोड’ के रूप में जाना जाता था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष निमित्त प्रधानमंत्री के निवास स्थान वाले उस मार्ग का नाम ‘लोक कल्याण मार्ग’ कर दिया गया है। वो उसी शताब्दी वर्ष के ‘ग़रीब कल्याण वर्ष’ का ही एक प्रतीकात्मक स्वरूप है। हम सब के प्रेरणा पुरुष, हमारी वैचारिक धरोहर के धनी श्रद्धेय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को आदरपूर्वक नमन करता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, विजयादशमी के दिन ही 2 साल पहले ‘मन की बात’ की मैंने शुरुआत की थी। इस विजयादशमी के पर्व पर 2 वर्ष पूर्ण हो जाएँगे। मेरी ये प्रामाणिक कोशिश रही थी कि ‘मन की बात’ – ये सरकारी कामों के गुणगान करने का कार्यक्रम नहीं बनना चाहिए। ये ‘मन की बात’ राजनैतिक छींटाकशी का कार्यक्रम नहीं बनना चाहिए। ये ‘मन की बात’ आरोप-प्रत्यारोप का कार्यक्रम नहीं बनना चाहिए। 2 साल तक भाँति-भाँति के दबावों के बावजूद भी – कभी-कभी तो मन लालायित हो जाए, इस प्रकार के प्रलोभनात्मक वातावरण के बावजूद भी – कभी-कभी नाराज़गी के साथ कुछ बात बताने का मन कर जाए, यहाँ तक दबाव पैदा हुए – लेकिन आप सब के आशीर्वाद से ‘मन की बात’ को उन सब से बचाए रख कर के सामान्य मानव से जुड़ने का मेरा प्रयास रहा। इस देश का सामान्य मानव मुझे किस प्रकार से प्रेरणा देता रहता है। इस देश के सामान्य मानव की आशा-आकांक्षायें क्या हैं? और मेरे दिलो-दिमाग पर जो देश का सामान्य नागरिक छाया रहता है, वो ही ‘मन की बात’ में हमेशा-हमेशा प्रकट होता रहा। देशवासियों के लिये ‘मन की बात’ जानकारियों का अवसर हो सकता है, मेरे लिये ‘मन की बात’ मेरे सवा-सौ करोड़ देशवासियों की शक्ति का एहसास करना, मेरे देश के सवा-सौ करोड़ देशवासियों के सामर्थ्य को बार-बार स्मरण करना और उसी से कार्य की प्रेरणा पाना, यही मेरे लिये ये कार्यक्रम बना। मैं आज 2 वर्ष इस सप्ताह जब पूर्ण हो रहे हैं, तब ‘मन की बात’ को आपने जिस प्रकार से सराहा, जिस प्रकार से संवारा, जिस प्रकार से आशीर्वाद दिए, मैं इसके लिए भी सभी श्रोताजनों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। मैं आकाशवाणी का भी आभारी हूँ कि उन्होंने मेरी इन बातों को न सिर्फ प्रसारित किया, लेकिन उसको सभी भाषाओं में पहुँचाने के लिए भरसक प्रयास किया। मैं उन देशवासियों का भी आभारी हूँ कि जिन्होंने ‘मन की बात’ के बाद चिट्ठियाँ लिख करके, सुझाव दे करके, सरकार के दरवाज़ों को खटखटाया, सरकार की कमियों को उजागर किया और आकाशवाणी ने ऐसे पत्रों पर विशेष कार्यक्रम करके, सरकार के लोगों को बुला करके, समस्याओं के समाधान के लिये platform प्रदान किया। तो ‘मन की बात’ सिर्फ 15-20 मिनट का संवाद नहीं, समाज-परिवर्तन का एक नया अवसर बन गया। किसी के भी लिये इससे बड़ा संतोष का कारण क्या हो सकता है और इसलिए इसको सफल बनाने में जुड़े हुए हर किसी को भी मैं धन्यवाद देता हूँ, उनका आभार प्रकट करता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, अगले सप्ताह नवरात्रि और दुर्गा-पूजा का पर्व, विजयादशमी का पर्व, दीपावली की तैयारियाँ, एक प्रकार से एक अलग सा ही माहौल पूरे देश में होता है। ये शक्ति-उपासना का पर्व होता है। समाज की एकता ही देश की शक्ति होती है। चाहे नवरात्रि हो या दुर्गा-पूजा हो, ये शक्ति की उपासना, समाज की एकता की उपासना का पर्व कैसे बने? जन-जन को जोड़ने वाला पर्व कैसे बने? और वही सच्ची शक्ति की साधना हो और तभी जाकर कर के हम मिल कर के विजय का पर्व मना सकते हैं। आओ, शक्ति की साधना करें। एकता के मन्त्र को लेकर के चलें। राष्ट्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिये शांति, एकता, सद्भावना के साथ नवरात्रि और दुर्गा-पूजा का पर्व मनाएँ, विजयादशमी की विजय मनाएँ।
बहुत-बहुत धन्यवाद।