खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी

राजनीति के हम्माम में तो सभी नंगे ही होंगे जी; फ़र्क इतना ही है कि कोई हरबार नए डिजाईनदार कपड़े पहनकर निकलता है और परिषदों में सम्मानित होता है; तो दूसरे हरबार जोकरनुमा बनकर पब्लिक को हँसाते हैं। मीडिया कवरेज दोनों को मिल जाता है। देश बहुत बड़ा है भाई, और इसमें हर मिजाज के लोग हैं: तो हर एक के लिए थोड़े-बहुत दीवाने-परवाने-मस्ताने मिल ही जाते हैं। ताली मिल जाती है निपट पप्पूनुमा नंगों को भी, और वे हर ताली पर गद्गदा जाते हैं कि अब  दिल्ली फ़तह हुई/  उधर भद्रलोक के सामने इतनी कम्पनियों के काम रहते हैं कि नंगई की तरफ़ ध्यान देना भी गंवारा नहीं> दोनों तरफ़ दलबन्दी है, अपनी अपनी बिरादरी बढाने की कोशिश न तो संविधान विरुद्ध है, न ही अनैतिक; कोशिश हर दल की जारी है। कोई इसी गम में दुबला हुआ जाता है कि  किसी  का दल पूरी दुनियां में सबसे बड़ा बन गया है।

कल कोई बता रहा था कि शहर के मुख्य चौराहे पर एक बड़ा झुण्ड पागलों की तरह सरे दोपहर आकाश की तरफ़ ताकते खड़ा है। सड़क जाम, गाड़ियां फ़ंस गई और चारों दिशाओं की सड़कें गाड़ियों से पट गई। हर गाड़ी से ड्राईवर-मालिक चिल्लाते हुए निकलते और बीच चौराहे पर आकर आकाश ताकने वालों की टोली के साथ मिल जाते। अप्रैल महीने के आरम्भ से ही सूरज तेज तपता है, आग बरसाता है; सब पसीना-पसीना हैं: एकाध तो भीषण धूप में चकराकर गिर भी पड़े, मगर सब बेफ़िक्र आकाश ताके जा रहे हैं। 
 

तमाशा जानकर कोई शिशु साधक भी आया। एक एक को बाँह पकड़कर पूछने लगा कि क्या है आकाश में? क्या देख रहे हैं तपते सूरज में? एक-दूसरे की तरफ़ इशारा कर देते लोग, कि इनसे पूछो मैं बिजी हूँ! शिशु एक से दूसरे दीवाने के हाथों शटलकॉक बना फ़ेंका जाता रहा देर तक, मगर हिम्मत न हारी। किसी बेहोश पड़े आदमी को पानी के छींटे डालकर उठाया, पानी पिलाकर पूछा कि कैसे गिर पड़े और तेज धूप में कर क्या रहे थे/ एक ने बताया कि ऊपर शीतल चन्दा चमक रहा है। हम सबके लिए हापुस आमों की बरसात कर रहा है। आम उसीकी झोली में गिरते हैं जिसने जीवन में कभी झूठ न बोला हो। मैं यह देख रहा था कि किस-किस की झोली आमों से भरती है/ शायद मुझे भी कुछ मिल जाए।

 

बेहूदा बकवास सुनकर शिशु मुस्कुराया। इतनी देर में आकाश ताकते पागलों की भीड़ कई गुना हो गई। ट्रेफ़िक पुलिस वाले भी अपनी ड्यूटी भुलाकर आमों के चक्कर में आकाश ताकने लग गए।  

शिशु शोधक ने तब भी मैदान न छोड़ा।  

 

अब इस सामूहिक पागलपन के आदि स्रोत को तलाश करना जरुरी है। वही इस पगलाई भीड़ को होंश में ला सकता है, ताकि रास्ते खुलें। रास्तों का खुलना और सतत प्रवहमान रहना जरुरी है। खाली होने का महत्व और आवश्यकता एक शिशु से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। जो बड़े हुए, वे सब रोबोट वाला प्रशिक्षण पाए पके-पकाए हैं। कौन  नहीं जानता कि कच्ची हाँडी में ही कोई  जोड़-तोड़-मरोड़ हो सकता है, पकी हाँडी के साथ कुछ नहीं किया जा सकता। शिशु साधक अभी कच्चा है, बच्चा है; इसीलिए बचा है।

 

शोध जारी है। भीड़ का तमाशा भी जारी है और टिकैत गैंग की तरह नए-नए ट्रेजडीवाल इस पागलपन को भड़काने आते रहते हैं। भीड़ को लुभाने की जल्दबाजी में कोई कोई तो हम्माम से बिना बदन पौंछे ही आ टपकता है। अब मीडिया के केमरों का क्या दोष/ फ़ोटो-इण्टरव्यू सहित इनकी नंगई को दिखाते रहते हैं> उनको टीआरपी का लालच, तो इनकी छपास की तेज भूख; जन-गण-मन  सब जानता है।

शिशु साधकों की शोध जारी है